संतोष खिरवड़कर
ग़ज़ल 23
अशआर 1
तोड़ कर आज ग़लत-फ़हमी की दीवारों को
दोस्तो अपने तअ'ल्लुक़ को सँवारा जाए
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere