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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सीमाब अकबराबादी

1882 - 1951 | आगरा, भारत

अग्रणी पूर्व-आधुनिक शायरों में विख्यात, सैंकड़ों शागिर्दों के उस्ताद।

अग्रणी पूर्व-आधुनिक शायरों में विख्यात, सैंकड़ों शागिर्दों के उस्ताद।

सीमाब अकबराबादी

ग़ज़ल 61

नज़्म 12

अशआर 46

उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन

दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में

इक आईना था टूट गया देख-भाल में

माज़ी-ए-मरहूम की नाकामियों का ज़िक्र छोड़

ज़िंदगी की फ़ुर्सत-ए-बाक़ी से कोई काम ले

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रोज़ कहता हूँ कि अब उन को देखूँगा कभी

रोज़ उस कूचे में इक काम निकल आता है

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तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ

नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी

लोरी 3

 

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