सेहर इश्क़ाबादी
ग़ज़ल 11
अशआर 8
एक हम हैं रात भर करवट बदलते ही कटी
एक वो हैं दिन चढ़े तक जिन का दर खुलता नहीं
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तेरी जफ़ा वफ़ा सही मेरी वफ़ा जफ़ा सही
ख़ून किसी का भी नहीं तो ये बता है क्या शफ़क़
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दावर ने बंदे बंदों ने दावर बना दिया
सागर ने क़तरे क़तरों ने सागर बना दिया
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वो दर्द है कि दर्द सरापा बना दिया
मैं वो मरीज़ हूँ जिसे ईसा भी छोड़ दे
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