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शाह नसीर

1756 - 1838 | दिल्ली, भारत

18वीं सदी के अग्रणी शायरों में विख्यात

18वीं सदी के अग्रणी शायरों में विख्यात

शाह नसीर

ग़ज़ल 71

अशआर 94

मुश्किल है रोक आह-ए-दिल-ए-दाग़दार की

कहते हैं सौ सुनार की और इक लुहार की

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काबे से ग़रज़ उस को बुत-ख़ाने से मतलब

आशिक़ जो तिरा है इधर का उधर का

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ग़ुरूर-ए-हुस्न कर जज़्बा-ए-ज़ुलेख़ा देख

किया है इश्क़ ने यूसुफ़ ग़ुलाम आशिक़ का

कम नहीं है अफ़सर-शाही से कुछ ताज-ए-गदा

गर नहीं बावर तुझे मुनइम तो दोनों तोल ताज

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मुल्ला की दौड़ जैसे है मस्जिद तलक 'नसीर'

है मस्त की भी ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार तक पहुँच

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पुस्तकें 7

 

ऑडियो 6

उस काकुल-ए-पुर-ख़म का ख़लल जाए तो अच्छा

क़दम न रख मिरी चश्म-ए-पुर-आब के घर में

ख़ाल-ए-मश्शाता बना काजल का चश्म-ए-यार पर

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