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शकेब जलाली

1934 - 1966 | कराची, पाकिस्तान

प्रसिद्ध पाकिस्तानी शायर। कम उम्र में आत्म हत्या की

प्रसिद्ध पाकिस्तानी शायर। कम उम्र में आत्म हत्या की

शकेब जलाली

ग़ज़ल 59

नज़्म 14

अशआर 44

अभी अरमान कुछ बाक़ी हैं दिल में

मुझे फिर आज़माया जा रहा है

ख़ुद अपनी आग से शायद गुदाज़ हो जाएँ

पराई आग से कब संग-दिल पिघलते हैं

जो मोतियों की तलब ने कभी उदास किया

तो हम भी राह से कंकर समेट लाए बहुत

ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ कहाँ बरसे

तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है

लोग देते रहे क्या क्या दिलासे मुझ को

ज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा

पुस्तकें 6

 

वीडियो 5

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आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे

अज्ञात

कनार-ए-आब खड़ा ख़ुद से कह रहा है कोई

अज्ञात

जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है

पंकज उदास

मुजरिम

यही रस्ता मिरी मंज़िल की तरफ़ जाता है अज्ञात

मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख

अज्ञात

ऑडियो 15

आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे

कोई इस दिल का हाल क्या जाने

ख़मोशी बोल उठ्ठे हर नज़र पैग़ाम हो जाए

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