रात तारों से जब सँवरती है
इक नई ज़िंदगी उभरती है
मौज-ए-ग़म से न हो कोई मायूस
ज़िंदगी डूब कर उभरती है
आज दिल में फिर आरज़ू-ए-दीद
वक़्त का इंतिज़ार करती है
दिल जले या दिया जले 'शौकत'
रात अफ़्साना कह गुज़रती है
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