सय्यद यासिर गीलानी
ग़ज़ल 11
अशआर 1
ये चाँद सा चेहरा है कि सूरज की किरन है
ज़ुल्फ़ें हैं तिरी रात सुहानी है कि क्या है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere