ताैफ़ीक़ हैदराबादी
ग़ज़ल 12
अशआर 3
किया है आज वा'दा किस ने आने का ख़ुदा जाने
नज़र आता है चश्म-ए-शौक़ दरवाज़ा मिरे घर का
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सहर के साथ होगा चाक मेरा दामन-ए-हस्ती
ब-रंग-ए-शम्अ बज़्म-ए-दहर में मेहमाँ हूँ शब भर का
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बनाई एक ही दोनों की सूरत काहिश-ए-ग़म ने
गुमाँ होता है तार-ए-पैरहन पर जिस्म-ए-लाग़र का
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