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ताैफ़ीक़ हैदराबादी

1864 - 1921 | हैदराबाद, भारत

ताैफ़ीक़ हैदराबादी

ग़ज़ल 12

अशआर 3

किया है आज वा'दा किस ने आने का ख़ुदा जाने

नज़र आता है चश्म-ए-शौक़ दरवाज़ा मिरे घर का

सहर के साथ होगा चाक मेरा दामन-ए-हस्ती

ब-रंग-ए-शम्अ बज़्म-ए-दहर में मेहमाँ हूँ शब भर का

बनाई एक ही दोनों की सूरत काहिश-ए-ग़म ने

गुमाँ होता है तार-ए-पैरहन पर जिस्म-ए-लाग़र का

 

पुस्तकें 2

 

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