aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
- 1792 | लखनऊ, भारत
अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द की खेती-बाड़ी
लहलही सी नज़र आती है हरी रहती है
उस के कूचे ही में आ निकलूँ हूँ जाऊँ जिस तरफ़
मैं तो दीवाना हूँ अपने इस दिल-ए-गुमराह का
का'बे में वही ख़ुद है वही दैर में है आप
हिन्दू कहो या उस को मुसलमान वही है
काबा जाने की हवस शैख़ हमें भी है वले
कूचा-ए-यार क़यामत है हवा-दार अज़ीज़
दोस्ती छूटे छुड़ाए से किसू के किस तरह
बंद होता ही नहीं रस्ता दिलों की राह का
Deewan-e-Waleeullah Muhib
1999
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