वसी शाह

ग़ज़ल 53

नज़्म 6

अशआर 16

तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से

कोई भी लफ़्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं

तुम्हें होश रहे और मुझे होश रहे

इस क़दर टूट के चाहो मुझे पागल कर दो

जो तू नहीं है तो ये मुकम्मल हो सकेंगी

तिरी यही अहमियत है मेरी कहानियों में

इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगे

किसी मा'ज़ूर को देखोगे तो याद आऊँगा

कौन कहता है मुलाक़ात मिरी आज की है

तू मिरी रूह के अंदर है कई सदियों से

पुस्तकें 2

 

वीडियो 8

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

वसी शाह

वसी शाह

Wasi Shah reading his poetry at a mushaira

वसी शाह

आँखों से मिरी इस लिए लाली नहीं जाती

वसी शाह

बाँध लें हाथ पे सीने पे सजा लें तुम को

वसी शाह

ये कामयाबियाँ इज़्ज़त ये नाम तुम से है

वसी शाह

समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं

वसी शाह

ऑडियो 23

अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दो

अपना तो चाहतों में यही इक उसूल है

अब जो लौटे हो इतने सालों में

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