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यगाना चंगेज़ी

1884 - 1956 | लखनऊ, भारत

प्रमुख पूर्वाधुनिक शायर जिन्होंने नई ग़ज़ल के लिए राह बनाई/मिर्ज़ा ग़ालिब के विरोध के लिए प्रसिद्ध

प्रमुख पूर्वाधुनिक शायर जिन्होंने नई ग़ज़ल के लिए राह बनाई/मिर्ज़ा ग़ालिब के विरोध के लिए प्रसिद्ध

यगाना चंगेज़ी

ग़ज़ल 70

अशआर 61

गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ

सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं

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मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा

मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता

सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है

अपने बस का काम कर लेता हूँ आसाँ देख कर

दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है

वहम की क्या दवा करे कोई

कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा

फिर वही हम वही अमीनाबाद

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

यगाना चंगेज़ी

यगाना चंगेज़ी

ऑडियो 14

अगर अपनी चश्म-ए-नम पर मुझे इख़्तियार होता

अदब ने दिल के तक़ाज़े उठाए हैं क्या क्या

आँख दिखलाने लगा है वो फ़ुसूँ-साज़ मुझे

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