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Zia-ul-Haq Qasmi's Photo'

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

पाकिस्तान

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 14

मुझे अपनी बीवी पे फ़ख़्र है मुझे अपने साले पे नाज़ है

नहीं दोश दोनों का इस में कुछ मुझे डाँटता कोई और है

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वो भरी बज़्म में कहती है मुझे अंकल-जी

डिप्लोमेसी है ये कैसी मिरी हम-साई की

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मैं जिसे हीर समझता था वो राँझा निकला

बात निय्यत की नहीं बात है बीनाई की

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कभी लिखने लिखाने की तो नौबत ही नहीं आती

मैं नाड़ा डाल लेता हूँ ज़रूरत जब भी पड़ती है

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कहते हैं कि लैला का तअल्लुक़ था अरब से

ये रंग तो अफ़्रीक़ा मकरान में देखा

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हास्य 23

पुस्तकें 16

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