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ज़ुबैर रिज़वी

1935 - 2016 | दिल्ली, भारत

प्रमुखतम आधुनिक शायरों में विख्यात/अपनी साहित्यिक पत्रिका ‘ज़ह्न-ए-जदीद’ के लिए प्रसिद्ध

प्रमुखतम आधुनिक शायरों में विख्यात/अपनी साहित्यिक पत्रिका ‘ज़ह्न-ए-जदीद’ के लिए प्रसिद्ध

ज़ुबैर रिज़वी

ग़ज़ल 40

नज़्म 37

अशआर 32

अपनी ज़ात के सारे ख़ुफ़िया रस्ते उस पर खोल दिए

जाने किस आलम में उस ने हाल हमारा पूछा था

इधर उधर से मुक़ाबिल को यूँ घाइल कर

वो संग फेंक कि बे-साख़्ता निशाना लगे

कच्ची दीवारों को पानी की लहर काट गई

पहली बारिश ही ने बरसात की ढाया है मुझे

जला है दिल या कोई घर ये देखना लोगो

हवाएँ फिरती हैं चारों तरफ़ धुआँ ले कर

भटक जाती हैं तुम से दूर चेहरों के तआक़ुब में

जो तुम चाहो मिरी आँखों पे अपनी उँगलियाँ रख दो

गीत 1

 

पुस्तकें 80

चित्र शायरी 4

 

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
At a mushaira

ज़ुबैर रिज़वी

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ज़ुबैर रिज़वी

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One of the most prominent modern poets. Well-known broadcaster associated with All India Radio. Famous for his literary magazine Zahn-e-Jadeed. ज़ुबैर रिज़वी

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ज़ुबैर रिज़वी

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One of the most prominent modern poets. Well-known broadcaster associated with All India Radio. Famous for his literary magazine Zahn-e-Jadeed. ज़ुबैर रिज़वी

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Zindagi aise gharo se khandar ache the_Ghazal by Zubair Rizvi

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Zubair Rizvi ricitng his ghazal/nazm at sham e sher mushaira by Rekhta.org

One of the most prominent modern poets. Well-known broadcaster associated with All India Radio. Famous for his literary magazine Zahn-e-Jadeed. ज़ुबैर रिज़वी

तब्दीली

One of the most prominent modern poets. Well-known broadcaster associated with All India Radio. Famous for his literary magazine Zahn-e-Jadeed. ज़ुबैर रिज़वी

ज़ुबैर रिज़वी

अकेले होने का ख़ौफ़

हमें ये रंज था ज़ुबैर रिज़वी

अली-बिन-मुत्तक़ी रोया

पुरानी बात है ज़ुबैर रिज़वी

कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा

ज़ुबैर रिज़वी

कुत्तों का नौहा

पुरानी बात है ज़ुबैर रिज़वी

ग़ुरूब-ए-शाम ही से ख़ुद को यूँ महसूस करता हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

ज़िंदगी ऐसे घरों से तो खंडर अच्छे थे

ज़ुबैर रिज़वी

दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं

ज़ुबैर रिज़वी

बच्चे और बदबू

बच्चों उस्तादों और सर-परस्तों ने ज़ुबैर रिज़वी

बिछड़ते दामनों में फूल की कुछ पत्तियाँ रख दो

ज़ुबैर रिज़वी

मैं ने कब बर्क़-ए-तपाँ मौज-ए-बला माँगी थी

ज़ुबैर रिज़वी

रद्द-ए-अमल

मुझे ये यक़ीं था ज़ुबैर रिज़वी

शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है

ज़ुबैर रिज़वी

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

हम कहाँ आ गए

हम कहाँ आ गए ज़ुबैर रिज़वी

हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे

ज़ुबैर रिज़वी

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