मेरा नाम राधा है
"ये कहानी औरत की इच्छा शक्ति को पेश करती है। राज किशोर के रवय्ये और बनावटी व्यक्तित्व से नीलम परिचित है, इसीलिए फ़िल्म स्टूडियो के हर फ़र्द की ज़बान से तारीफ़ सुनने के बावजूद वो उससे प्रभावित नहीं होती। एक रोज़ सख़्त लहजे में बहन कहने से भी मना कर देती है और फिर आख़िरकार रक्षा बंधन के दिन आक्रोशित हो कर उसे बिल्लियों की तरह नोच डालती है।"
सआदत हसन मंटो
बलवंत सिंह मजेठिया
यह एक रूमानी कहानी है। शाह साहब काबुल में एक बड़े व्यापारी थे, वो एक लड़की पर मुग्ध हो गए। अपने दोस्त बलवंत सिंह मजीठिया के मशवरे से मंत्र पढ़े हुए फूल सूँघा कर उसे राम किया लेकिन दुल्हन के कमरे में दाख़िल होते ही दुल्हन मर गई और उसके हाथ में विभिन्न रंग के वही सात फूल थे जिन्हें शाह साहब ने मंत्र पढ़ कर सूँघाया था।
सआदत हसन मंटो
सितारों से आगे
कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े एक छात्र समूह की कहानी, जो रात के अँधेरे में एक गाँव के लिए सफ़र कर रहा होता है। सभी साथी एक बैलगाड़ी में बैठे हैं और समूह का एक साथी महिया गा रहा है और दूसरे लोग उसे सुन रहे हैं। बीच-बीच में कोई टोक देता है और कोई उसका जवाब देने लगता है। मगर दिए जाने वाले ये जवाब, महज़ जवाब नहीं हैं बल्कि उनके एहसासात भी उसमें शामिल हैं।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
ढारस
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है जिसे शराब पीने के बाद औरत की ज़रूरत होती है। उस दिन वह अपने एक हिंदू दोस्त की बारात में गया हुआ था। वहाँ भी पीने-पिलाने का दौर चला। किसी ने भी उसकी इस आदत को अहमियत नहीं दी। वह पीने के बाद छत पर चला गया। वहाँ वह अंधेरे में लेटी एक अनजान लड़की के साथ जाकर सो गया। बाद में पता चला कि वह दुल्हन की विधवा बहन थी। उसकी इस हरकत पर वह लगातार रो रही थी। लोगों के समझाने-बुझाने पर वह मान जाती है और किसी से कुछ नहीं कहती।
सआदत हसन मंटो
एहतियात-ए-इश्क़
कहानी एक ऐसी लड़की की है, जिसने अपने प्रेमी को एक साल पहले देखा था और उसकी आँखों में उसकी वही छवि बसी हुई थी। अब जबकि वह उससे मिलने आ रहा था तो वह उसके इस्तिक़बाल में कोई कमी नहीं रहने देना चाहती थी। उसने सुना था कि उसका महबूब फौज में भर्ती हो गया है, इससे उसमें कुछ बांकपन आ गया होगा। मगर जब उसने उसे एयरपोर्ट पर देखा तो वह उसे देखकर इस क़दर हैरान हुई कि एक बार तो उसने उसे पहचानने से ही इंकार दिया।
हिजाब इम्तियाज़ अली
लाला इमाम बख़्श
मोहर्रम में माँगी गई दुआ के सिले में पैदा हुए देवी प्रसाद बख़्श ने अपने बेटे का नाम लाला इमाम बख़्श रख दिया था। इमाम बख़्श देवी प्रसाद का इकलौता बेटा था, इसलिए उन्होंने उसे कभी कुछ नहीं कहा। उसके मन में जो आता वह करता फिरता। देवी प्रसाद की मौत के बाद उसने अपना सिक्का जमाना शुरू कर दिया। फिर गाँव वालों ने सलाह कर के उन्हें ज़मींदारी छोड़ने के एवज़ में प्रधानी सौंप दी। हालात ने तब करवट बदली जब गाँव के नज़दीक एक क़त्ल हो गया और उसके जुर्म में लाला इमाम बख़्श को गिरफ्तार कर लिया गया।