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सामंतवाद पर कहानियाँ

दीवाली

तीज-त्योहार पर अपने प्यारों को देखने का हर किसी का सपना होता है। मेकवा सहूकार के यहाँ काम करता है। वह कड़ी मेहनत करता है और हर काम को वक़्त पर पूरा कर देता है। दिवाली पर वह घर की साफ़-सफ़ाई में लगा हुआ है और इसी बीच उसे दीवार पर लगी लक्ष्मी जी की तस्वीर दिखती है। उस तस्वीर को देखकर उसे अपनी मंगेतर लक्ष्मी की याद आती है। वह सारा दिन उसके ख़्यालों में खोया रहता है। शाम को प्रसाद लेने के बाद वह मेहता जी की खु़शामद करके चार घंटे की छुट्टी माँग लेता है और साइकिल पर सवार होकर अपनी मंगेतर के गाँव की ओर दौड़ लगा देता है। लेकिन वहाँ जाकर उसे जो पता चलता है उससे उसके पैरों तले की ज़मीन ही खिसक जाती है।

क़ाज़ी अबदुस्सत्तार

रज़्ज़ो बाजी

पहला प्यार भुलाए नहीं भूलता है। एक अर्से बाद रज़्ज़ो बाजी का ख़त आता है। वही रज़्ज़ो जो पंद्रह साल पहले हमारे इलाके़ के मशहूर मोहर्रम देखने आई थीं। उसी मोहर्रम में हीरो की उनसे मुलाकात हुई थी और वहीं वह एहसास उभरा था जिसने रज़्ज़ो बाजी को फिर कभी किसी का न होने दिया। अपनी माँ के जीते जी रज़्ज़ो बाजी ने कोई रिश्ता क़बूल नहीं किया। फिर जब माँ मर गई और बाप पर फ़ालिज गिर गया तो रज़्ज़ो बाजी ने एक रिश्ता क़बूल कर लिया। लेकिन शादी से कुछ अर्से पहले ही उन पर जिन्नात आने लगे और शादी टूट गई। इसके बाद रज़्ज़ो बाजी ने कभी किसी से रिश्ते की बात न की। सिर्फ़ इसलिए कि वह मोहर्रम में हुए अपने उस पहले प्यार को भूला नहीं सकी थीं।

क़ाज़ी अबदुस्सत्तार

मालकिन

उस हवेली की पूरे इलाके में बड़ी ठाट थी। हर कोई उसके आगे सिर झुका कर चलता था। लेकिन विभाजन ने सब कुछ बदल दिया था और फिर उसके बाद 1950 के सैलाब ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। उसके बाद हवेली को लेकर हुई मुक़दमेबाज़ी ने भी मालकिन को किसी क़ाबिल न छोड़ा। मालकिन का पूरा ख़ानदान पाकिस्तान चला गया था। वहाँ से उनके एक चचा-ज़ाद भाई ने उन्हें बुलवा भी भेजा था लेकिन मालकिन ने जाने से मना कर दिया। वह अपना सारा काम चौधरी गुलाब से करा लिया करती थीं। बदलते वक़्त के साथ ऐसा समय भी आया कि हवेली की बची-खुची शान-ओ-शौकत भी जाती रही और वह किसी खंडहर में तब्दील हो गई। नौबत यहाँ तक आ गई कि मालकिन ने गुज़ारा करने के लिए कुर्ते सीने का काम शुरू कर दिया। इस काम में चौधरी गुलाब उनकी मदद करता है। लेकिन इस मदद को लोगों ने अपने ही तरह से लिया और दोनों को बदनाम करने लगे।

क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
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