aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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हिजरत पर ई-पुस्तक

एक जगह दूसरी जगह या

एक वतन से किसी नए वतन की तरफ़ मुंतक़िल हो जाने को हिजरत कहा जाता है। हिजरत ख़ुद इख़्तियारी अमल नहीं है बल्कि आदमी बहुत से मज़हबी, सियासी और मआशी हालात से मजबूर हो कर हिजरत करता है। हमारे इस इन्तिख़ाब में जो शेर हैं उन में हिजरत की मजबूरियों और उस के दुख दर्द को मौज़ू बनाया गया है साथ ही एक मुहाजिर अपने पुराने वतन और उस से वाबस्ता यादों की तरफ़ किसी तरह पलटता है और नई ज़मीन से उस की वाबस्तगी के क्या मसाएल है इन उमूर को मौज़ू बनाया गया है।

Hijrat Aur Jihad

1985

Hijratoan Ke Silsilay

1998

Huzoor-e-Akram Aur Hijrat

1987

Saifuddeen Kitchlew Jallianwala Bagh Ka Hero

1998

Tahreek-e-Hijrat

1989

Tareekh-e-Hijrat

1995

Urdu Fiction Mein Hijrat

2005

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

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