वह लड़की
कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने दंगों के दौरान चार मुसलमानों की हत्या की थी। एक दिन वह घर में अकेला था तो उसने बाहर पेड़ के नीचे एक लड़की को बैठे देखा। इशारों से उसे घर बुलाने में नाकाम रहने के बाद वह उसके पास गया और ज़बरदस्ती उसे घर ले आया। जल्दी ही उसने उसे क़ाबू में कर लिया और चूमने लगा। बिस्तर पर जाने से पहले लड़की ने उससे पिस्तौल देखने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की तो उसने अपनी पिस्तौल लाकर उसे दे दी। लड़की ने पिस्तौल हाथ में लेते ही चला दी और वह वहीं ढेर हो गया। जब उसने पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया तो लड़की ने बताया कि उसने जिन चार मुसलमानों की हत्या की थी उनमें एक उस लड़की का बाप भी था।
सआदत हसन मंटो
यज़ीद
करीम दादा एक ठंडे दिमाग़ का आदमी है जिसने तक़सीम के वक़्त फ़साद की तबाहियों को देखा था। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान जंग के तानाज़ुर में यह अफ़वाह उड़ती है कि हिन्दुस्तान वाले पाकिस्तान की तरफ़ आने वाले दरिया का पानी बंद कर रहे हैं। इसी बीच उसके यहाँ एक बच्चे का जन्म होता है जिसका नाम वह यज़ीद रखता है और कहता है कि उस यज़ीद ने दरिया बंद किया था, यह खोलेगा।
सआदत हसन मंटो
इज़्ज़त के लिए
चवन्नी लाल को बड़े आदमियों से ताल्लुक़ पैदा करने में एक अजीब तरह का सुकून मिलता था। उसका घर भी हर क़िस्म की तफ़रीह और सुविधा के लिए हर वक़्त खुला रहता था। हरबंस एक बड़े अफ़सर का बेटा था। फ़सादात के दिनों में उसने चवन्नी लाल की बहन रूपा का बलात्कार किया था, जब खू़न बहना बंद नहीं हुआ तो उसने चवन्नी लाल से मदद मांगी। चवन्नी लाल ने अपनी बहन को देखा लेकिन उस पर बेहिसी तारी रही और यह सोचने में मसरूफ़ रहा कि किस तरह एक बड़े आदमी की इज़्ज़त बचाई जाए। उसके बरअक्स हरबंस पर जूनून तारी हो जाता है और वह चवन्नी लाल को गोली मार देता है। अख़बारों में ख़बर छपती है कि चवन्नी लाल ने अपनी बहन से मुंह काला करने के बाद खुद्कुशी कर ली।
सआदत हसन मंटो
अंजाम बख़ैर
विभाजन के दौरान हुए दंगों में दिल्ली में फँसी एक नौजवान वेश्या की कहानी है। दंगों में क़त्ल होने से बचने के लिए वह पाकिस्तान जाना चाहती है, लेकिन उसकी बूढ़ी माँ दिल्ली नहीं छोड़ना चाहती। आख़िर में वह अपने एक पुराने उस्ताद को लेकर चुपचाप पाकिस्तान चली जाती है। वहाँ पहुँचकर वह शराफ़त की ज़िंदगी गुज़ारना चाहती है। मगर जिस औरत पर भरोसा करके वह अपना नया घर आबाद करना चाहती थी, वही उसका सौदा किसी और से कर देती है। वेश्या को जब इस बात का पता चलता है तो वह अपने घुँघरू उठाकर वापस अपने उस्ताद के पास चली जाती है।
सआदत हसन मंटो
सौ कैंडल पॉवर का बल्ब
"इस कहानी में इंसान की स्वाभाविक और भावनात्मक पहलूओं को गिरफ़्त में लिया गया है जिनके तहत वो कर्म करते हैं। कहानी की केन्द्रीय पात्र एक वेश्या है जिसे इस बात से कोई सरोकार नहीं कि वो किस के साथ रात गुज़ारने जा रही है और उसे कितना मुआवज़ा मिलेगा बल्कि वो दलाल के इशारे पर कर्म करने और किसी तरह काम ख़त्म करने के बाद अपनी नींद पूरी करना चाहती है। आख़िर-कार तंग आकर अंजाम की परवाह किए बिना वो दलाल का ख़ून कर देती है और गहरी नींद सो जाती है।"
सआदत हसन मंटो
क़ादिरा क़साई
अपने ज़माने की एक ख़ूबसूरत और मशहूर वेश्या की कहानी। उसके कोठे पर बहुत से लोग आया करते थे। सभी उससे मोहब्बत का इज़हार किया करते थे। उनमें एक ग़रीब शख़्स भी उससे मोहब्बत का दावा करता था। वेश्या ने उसकी मोहब्बत को ठुकरा दिया। वेश्या के यहाँ एक बेटी हुई। वह भी बहुत ख़ूबसूरत थी। जिन दिनों उसकी बेटी की नथ उतरने वाली थी उन्हीं दिनों देश का विभाजन हो गया। इसमें वेश्या मारी गई और उसकी बेटी पाकिस्तान चली गई। यहाँ भी उसने अपना कोठा जमाया। जल्द ही उसके कई चाहने वाले निकल आए। वह जिस शख़्स को अपना दिल दे बैठी थी वह एक क़ादिरा कसाई था, जिसे उसकी मोहब्बत की कोई ज़रूरत नहीं थी।
सआदत हसन मंटो
सरकण्डों के पीछे
"औरत के अन्तर्विरोधों को बयान करती हुई यह कहानी है। इसमें एक तरफ़ नवाब है जो इतनी सादा और सरल है कि जब सरदार उससे पेशा कराती है तो वो सोचती है कि जवान होने के बाद हर औरत का यही काम होता है। दूसरी तरफ़ शाहीना है जो नवाब का क़त्ल करके उसका गोश्त पका डालती है, सिर्फ़ इस आधार पर कि हैबत ख़ान ने उससे बेवफ़ाई की थी और नवाब के यहाँ आने जाने लगा था"
सआदत हसन मंटो
सेराज
यह एक ऐसी नौजवान वेश्या की कहानी है, जो किसी भी ग्राहक को ख़ुद को हाथ नहीं लगाने देती। हालाँकि जब उसका दलाल उसका सौदा किसी से करता है, तो वह ख़ुशी-ख़ुशी उसके साथ चली जाती है, लेकिन जैसे ही ग्राहक उसे कहीं हाथ लगाता है कि अचानक वह उससे झगड़ने लगती है। दलाल उसकी इस हरकत से बहुत परेशान रहता है, पर वह उसे ख़ुद से अलग भी नहीं कर पाता है, क्योंकि वह उससे मोहब्बत करने लगा है। एक दिन वह दलाल को लेकर लाहौर चली जाती है। वहाँ वह उस नौजवान से मिलती है, जो उसे घर से भगाकर एक सराय में अकेला छोड़ गया था।
सआदत हसन मंटो
गिलगित ख़ान
यह होटल में काम करने वाले एक बहुत बदसूरत नौकर की कहानी है। उसकी बदसूरती के कारण उसका मालिक उसे पसंद करता है और न ही वहाँ आने वाले ग्राहक। मगर अपनी मेहनत और शिष्टाचार से वह सभी का लोकप्रिय बन जाता है। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए वह मालिक की नापसंदगी के बावजूद एक कुत्ते का पिल्ला पाल लेता है। बड़ा होने पर कुत्ते को पेट की कोई बीमारी हो जाती है, तो उसे ठीक करने के लिए गिलगित ख़ान चोरी से अपने मालिक का बटेर मारकर कुत्ते को खिला देता है।
सआदत हसन मंटो
रूपा
यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है जिसका बाप रजब अवध की गढ़ी की सियासत में काफ़ी फल-फूल गया था। उसने अपने बेटे हुसैन को भी अपनी तरह पहलवान बनाया था। मगर जवानी में उसे अपने बाप के दुश्मन मुनव्वर की बेटी रूपा से मोहब्बत हो जाती है। उस मोहब्बत में रजब की जान चली जाती है, पर हुसैन रूपा को अपने घर लाने में कामयाब रहता है। वह रूपा को ब्याह तो लाया था पर कभी उसके दिल में जगह नहीं बना सका था, क्योंकि रूपा को उसका दुबला-पतला शरीर पसंद नहीं था। फिर अचानक ऐसा कुछ हुआ जिसकी वजह से वह उससे मोहब्बत किए बिना रह न सकी।
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
मोहब्बत या हलाकत?
कहानी एक ऐसे शख़्स की दास्तान को बयान करती है जो अपनी चचाज़ाद बहन से बहुत मोहब्बत करता है। एकाएक वह चचाज़ाद बीमार पड़ जाती है और उसके इलाज के लिए एक नौजवान डॉक्टर आने लगता है। चचाज़ाद डॉक्टर की तरफ़ मुतवज्जा होने लगती है और वह उसी से शादी करने का फै़सला कर लेती है। उसके इस फ़ैसले पर उसका चचाज़ाद भाई अपने उस रक़ीब डाक्टर का क़त्ल कर देता है।
हिजाब इम्तियाज़ अली
क़ैदी की सरगुज़श्त
जेल में बंद एक ऐसे क़ैदी की कहानी है जो सियासी मुजरिम है। क़ैद में बाहर की दुनिया और बीती ज़िंदगी को याद करके वह उदास हो जाता है। फिर एक रोज़ उसके पास एक बिल्ली का बच्चा आ जाता है। बिल्ली का बच्चा उसके साथ रहने लगता है। एक दिन अचानक उस क़ैदी की तबियत ख़राब होती है और वह तड़प-तड़प कर मर जाता है। सुबह जब संतरी उसे देखने आता है तो उसके साथ ही वह बिल्ली के बच्चे को भी मरा हुआ पाता है।
मिर्ज़ा अदीब
मज्जू भय्या
कहानी एक ऐसे शख़्स की दास्तान बयान करती है जिसका बाप पंडित आनंद सहाय ताल्लुक़दार का नौकर था। इकलौता होने पर भी बाप उसे रो‘अब-दाब में रखता था, बाप के मरते ही उसके पर निकल आए और वह पहलवानी के दंगल में कूद पड़ा। पहलवान के दंगल से निकला तो गाँव की सियासत में रम गया और यहाँ उसने ऐसे-ऐसे कारनामे अंजाम दिए कि अपनी एक अलग जागीर बना ली। मगर इस दौरान उससे मोहब्बत और नफ़रत करने वाले बहुत से औरत-मर्द हो गए, जिन्हें वह मौक़ा मिलते ही एक-एक कर अपने रास्ते से हटाता चला गया।
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
लाला इमाम बख़्श
मोहर्रम में माँगी गई दुआ के सिले में पैदा हुए देवी प्रसाद बख़्श ने अपने बेटे का नाम लाला इमाम बख़्श रख दिया था। इमाम बख़्श देवी प्रसाद का इकलौता बेटा था, इसलिए उन्होंने उसे कभी कुछ नहीं कहा। उसके मन में जो आता वह करता फिरता। देवी प्रसाद की मौत के बाद उसने अपना सिक्का जमाना शुरू कर दिया। फिर गाँव वालों ने सलाह कर के उन्हें ज़मींदारी छोड़ने के एवज़ में प्रधानी सौंप दी। हालात ने तब करवट बदली जब गाँव के नज़दीक एक क़त्ल हो गया और उसके जुर्म में लाला इमाम बख़्श को गिरफ्तार कर लिया गया।