तिश्नगी पर चित्र/छाया शायरी

यूँ तो प्यास पानी की

तलब का नाम है लेकिन उर्दू शायरी या अदब में किसी भी शय की शदीद ख़्वाहिश को प्यास का ही नाम दिया गया है। प्यास के हवाले से कर्बला के वाक़ेआत की तरफ़ भी उर्दू शायरी में कई हवाले मिलते हैं। साक़ी शराब और मैख़ाने का भी शायरी ने तश्नगी से रिश्ता जोड़ रखा है। तश्नगी शायरी के ये बे-शुमार रंग मुलाहिज़ा फ़रमाइयेः

अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में

अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में

पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी

पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी

अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में

अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में

आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी

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