राह-ए-नजात
झींगुर महतो को अपने खेतों पर बड़ा नाज़ था। एक दिन बुद्धू गड़रिया अपनी भेड़ों को उधर से लेकर गुज़रने लगा तो महतो को इतना ग़ुस्सा आया कि उसने हाथ छोड़ दिया और बुद्धू की भेड़ों पर ताबड़-तोड़ लाठियाँ बरसा दीं। बदले में एक रात बुद्धू ने महतों के खेतों में आग लगा दी। दोनों के बीच पनपी यह रंजिश इतनी लंबी चली कि एक दिन वह भी आया जब दो वक़्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ा।
प्रेमचंद
नींद नहीं आती
एक ऐसे नौजवान की कहानी है जो ग़रीबी, बेबसी, भटकाव और अर्धस्वप्नावस्था की चेतना का शिकार है। वह अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारने की हर मुमकिन कोशिश करता है मगर कामयाब नहीं हो पाता। रात में चारपाई पर लेटे हुए मच्छरों की भिनभिनाहट और कुत्तों के भौंकने की आवाज़ सुनता हुआ वह अपनी बीती ज़िंदगी के कई वाक़िआत याद करता है और सोचता है कि उसने इस ज़िंदगी को बेहतर करने के लिए कितनी जद्द-ओ-जहद की है।
सज्जाद ज़हीर
मोज़ेल
औरत के त्याग, बलिदान और मुहब्बत व ममता के इर्द-गिर्द बुनी गई यह है। मोज़ील एक आज़ाद-मिज़ाज यहूदी लड़की है जो पाबंद वज़ा सरदार त्रिलोचन का ख़ूब मज़ाक़ उड़ाती है लेकिन वक़्त पड़ने पर वो दंगा-ग्रस्त इलाक़े में जा कर त्रिलोचन की मंगेतर को दंगाइयों के चंगुल से आज़ाद कराती है और ख़ुद दंगे का शिकार हो जाती है।
सआदत हसन मंटो
गुरमुख सिंह की वसीयत
सरदार गुरूमुख सिंह को अब्द-उल-हई जज ने एक झूठे मुक़द्दमे से नजात दिलाई थी। उसी एहसान के बदले में गुरूमुख सिंह ईद के दिन जज साहब के यहाँ सेवइयाँ लेकर आता था। एक साल जब दंगों ने पूरे शहर में आतंक फैला रखा था, जज अबदुलहई फ़ालिज की वजह से मृत्यु शैया पर थे और उनकी जवान बेटी और छोटा बेटा हैरान परेशान थे कि इसी ख़ौफ़ व परेशानी के आलम में सरदार गुरूमुख सिंह का बेटा सेवइयाँ लेकर आया और उसने बताया कि उसके पिता जी का देहांत हो गया है और उन्होंने जज साहब के यहाँ सेवइयाँ पहुँचाने की वसीयत की थी। गुरूमुख सिंह का बेटा जब वापस जाने लगा तो बलवाइयों ने रास्ते में उससे पूछा कि अपना काम कर आए, उसने कहा कि हाँ, अब जो तुम्हारी मर्ज़ी हो वो करो।
सआदत हसन मंटो
दर्स-ए-मोहब्बत
यह यूनान की अपने ज़माने में सबसे ख़ूबसूरत लड़की की कहानी है, जो ज़ोहरा देवी के मंदिर में रहती है। उसके हुस्न के चर्चे हर तरफ़ हैं। यहाँ तक कि उस मुल्क का शहज़ादा भी उसका दीवाना है। एक रात वह उससे एक नदी के किनारे मिलता है और वहाँ वह शहज़ादे को मोहब्बत का ऐसा दर्स देती है कि जिसमें वह फे़ल हो जाता है और वह हसीन लड़की एक किसान के बेटे के साथ शादी कर लेती है।
नियाज़ फ़तेहपुरी
दो क़ौमें
यह कहानी धर्म और मोहब्बत दोनों बिन्दुओं पर समान रूप से चर्चा करती है। मुख़्तार और शारदा दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते हैं मगर जब शादी की बात आती है तो दोनों अपने-अपने धर्म पर अड़ जाते हैं। ऐसे में उनकी मोहब्बत तो पीछे रह जाती है और धर्म उन दोनों पर हावी हो जाता है। दोनों अपने-अपने रास्ते वापस चले जाते हैं।
सआदत हसन मंटो
ख़ुदकुशी
यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसके यहाँ शादी के बाद बेटी का जन्म होता है। लाख कोशिशों के बाद भी वह उसका कोई अच्छा सा नाम नहीं सोच पाता है। नाम की तलाश के लिए वह डिक्शनरी ख़रीदता है, पर जब तक डिक्शनरी लेकर वह घर पहुँचता है तब तक बेटी की मौत हो चुकी होती है। बेटी की मौत के दुख में कुछ ही दिनों बाद उसकी पत्नी की भी मृत्यु हो जाती है। ज़िंदगी के दिए उन दुखों से तंग आकर वह आत्महत्या करने की सोचता है। इस उद्देश्य से वह रेलवे लाइन पर जाता है मगर वहाँ पहले से ही एक दूसरा व्यक्ति लाइन पर लेटा होता है। सामने से आ रही ट्रेन को देखकर वह उस व्यक्ति को बचा लेता है और उस से ऐसी बातें कहता है कि उन बातों से उसकी ख़ुद की ज़िंदगी पूरी तरह बदल जाती है।
सआदत हसन मंटो
रौशनी की रफ़्तार
‘रोशनी की रफ्तार’ कहानी कुर्तुल ऐन हैदर की बेपनाह रचनात्मक सलाहियतों के नये आयामों को प्रदर्शित करती है। इस कहानी में वर्तमान से अतीत की यात्रा की गयी है। सैकड़ों वर्षों के फासलों को लाँघ कर कभी अतीत को वर्तमान काल में लाकर और कभी वर्तमान को अतीत के अंदर, बहुत अंदर ले जाकर मानव-जीवन के रहस्यों को देखने, समझने और उसकी सीमाओं तथा संभावनाओं का जायज़ा लेने का प्रयत्न किया गया है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
ख़ालिद मियां
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो अपने बेटे की मौत के वहम में मानसिक तनाव का शिकार हो जाता है। ख़ालिद मियाँ एक बहुत तंदुरुस्त और ख़ूबसूरत बच्चा था। कुछ ही दिनों में वह एक साल का होने वाला था, पर उसकी सालगिरह से दो दिन पहले ही उसके बाप मुम्ताज़ को यह संदेह होने लगा था कि ख़ालिद एक साल का होने से पहले ही मर जाएगा। हालाँकि बच्चा बिल्कुल स्वस्थ था और हँस-खेल रहा था। मगर जैसे-जैसे वक़्त बीतता जाता था, मुमताज़ का संदेह और भी गहरा होता जाता था।
सआदत हसन मंटो
शाह दूले का चूहा
मज़हब के नाम पर गोरख धंधा करने वालों की कहानी है। शाह दूले के मज़ार के बारे में यह अक़ीदा राइज कर दिया गया था कि यहाँ मन्नत मानने के बाद अगर बच्चा होता है तो पहला बच्चा शाह दूले का चूहा है और उस बच्चे को मज़ार पर छोड़ना ज़रूरी है। सलीमा को अपना पहला बच्चा मुजीब इसी अक़ीदे से मज़ार पर छोड़ना पड़ा, लेकिन वह उसका ग़म अपने सीने से लगाये रही। एक मुद्दत के बाद जब मुजीब उसके दरवाज़े पर शाह दूल्हे का चूहा बन कर आता है तो सलीमा उसे तुरंत पहचान लेती है और तमाशा दिखाने वाले से पाँच सौ के बदले उसे ले लेती है, लेकिन जब वह पैसे देकर वापस अंदर आती है तो मुजीब ग़ायब हो चुका होता है।
सआदत हसन मंटो
हाफ़िज़ हुसैन दीन
यह तंत्र-मंत्र के सहारे लोगों को ठगने वाले एक ढोंगी पीर की कहानी है। हाफ़िज़ हुसैन दीन आँखों से अंधा था और ज़फ़र शाह के यहाँ आया हुआ था। ज़फ़र से उसका सम्बंध एक जानने वाले के ज़रिए हुआ था। ज़फ़र पीर-औलिया पर बहुत यक़ीन रखता था। इसी वजह से हुसैन दीन ने उसे आर्थिक रूप से ख़ूब लूटा और आख़िर में उसकी मंगेतर को ही लेकर भाग गया।
सआदत हसन मंटो
डालन वाला
यह कहानी बचपन की यादों के सहारे अपने घर और घर के वसीले से एक पूरे इलाक़े की, और उस इलाक़े द्वारा विभिन्न व्यक्तियों के जीवन की चलती-फिरती तस्वीरें पेश करती है। समाज के अलग-अलग वर्गों से सम्बंध रखने वाले, पृथक आस्थाएं और विश्वास रखने वाले, विभन्न लोग हैं जो अपनी-अपनी समस्याओं और मर्यादाओं में बंधे हैं।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
परवाज़ के बाद
यह दिली एहसासात और ख़्वाहिशात को बयान करती हुई कहानी है। इसमें घटनाएं कम और वाक़िआत ज़्यादा हैं। दो लड़कियाँ जो साथ में पढ़ती हैं उनमें से एक को एक शख़्स से मोहब्बत हो जाती है। मगर वह शख्स उसे मिलकर भी मिल नहीं पाता और बिछड़ने के बाद भी जुदा नहीं होता। कहा जाए तो यह मिलन और जुदाई के दरमियान की कहानी है, जिसे एक बार जरूर पढ़ा जाना चाहिए।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
वो कौन थी?
एक बहुत ही मज़हबी शख़्स और उसके ख़ानदान की कहानी है। उस शख़्स के दो घर हैं, एक में वह अपनी फ़ैमिली के साथ रहता है और दूसरा मकान ख़ाली पड़ा हुआ है। अपने ख़ाली मकान को किसी शरीफ़ और नेक शख़्स को किराए पर देना चाहता है। फिर एक दिन उस घर में एक औरत आकर रहने लगती है और वह शख़्स उसके पास जाने लगता है। इस बारे में जब उसकी बीवी और घर के लोगों को पता चलता है तो कहानी एक नया मोड़ लेती है और वो मज़हबी और दीनदार शख़्स अपने घर वालों की निगाहों में क़ाबिल-ए-नफ़रीन बन जाता है।
मिर्ज़ा अदीब
मंगल अष्टिका
यह एक ब्रह्मचारी पंड़ित की कहानी है, जिसे अपने ब्रह्मचर्य पर नाज़ है साथ ही उसका जीवन साथी के न होने का दुख भी है। अपने एक यजमान की शादी की रस्म अदा कराते हुए उसे अपनी तन्हाई का एहसास होता है और उसकी तबीयत भी ख़राब हो जाती है। अपनी देखभाल के लिए अपनी भाभी को ख़त लिखता है मगर भाभी धान की कटाई में मसरूफ़ होने के बाइस उसकी देखभाल के लिए नहीं आ पाती। पंडित का एक रिश्तेदार पंड़ित से अपनी पत्नी की तारीफ़ करता है और पत्नी के होने के फ़ायदे बताता है। साथ ही वह पंड़ित को भी शादी करने की सलाह देता है, जिसे पंडित क़ुबूल कर लेता है।
राजिंदर सिंह बेदी
ख़ाँ साहब
कहानी एक ऐसे शख़्स के गिर्द घूमती है, जो बहुत दीनदार है मगर इतना कंजूस है कि उसकी बीवी-बेटी बहुत मुफ़्लिसी में गुज़ारा करती हैं। उसकी बीवी बेटी को अच्छी परवरिश के लिए एक औरत के पास छोड़ देती है, तो बदले में वह उस औरत से पैसे भी माँगता है। औरत पैसे तो नहीं देती, हाँ एक पढ़े-लिखे लड़के से उसका रिश्ता तय कर देती है। मगर कम मेहर और नकद न मिलने की वजह से वह धोखे से अपनी बेटी की शादी एक अमीर और अधेड़ उम्र के शख़्स से करा देता है।
मोहम्मद मुजीब
शगूफ़ा
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो जवानी में सैर करने के शौक़ में अमरनाथ की यात्रा पर निकल पड़ा था। वहाँ रास्ता भटक जाने के कारण वह एक कश्मीरी गाँव में जा पहुँचा। उस गाँव में उसने उस ख़ूबसूरत लड़की को देखा जिसका नाम शगूफ़ा था। शगूफ़ा को गाँव वाले चुड़ैल समझते थे और उससे डरते थे। गाँव वालों के मना करने के बावजूद वह शगूफ़ा के पास गया, क्योंकि वह उससे मोहब्बत करता था। उसकी मोहब्बत का जवाब देने से पहले शगूफ़ा ने उसे अपनी वो दास्तान सुनाई, जिसके समापन में उसे अपनी जान देनी पड़ी।
मिसेज़ अब्दुल क़ादिर
सदा-ए-जरस
इस अफ़साने में एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसे मिस्र से आई एक हज़ारों साल पुरानी ममी से मोहब्बत हो जाती है। उस ममी को दिखाने के लिए वह अपने एक ख़ास दोस्त को भी बुलाता है। दोस्त के साथ उसकी बीवी भी आती है। वह जब अपने दोस्त को ममी दिखाता है तो साथ ही चाहता है कि वह उसकी तरह उस ममी से अपनी मोहब्बत को व्यक्त करे। दोस्त अपनी बीवी के कारण उससे मोहब्बत का इज़हार नहीं करता। इसके बाद वह अपनी बीवी को लेकर वापस अपने घर चला आता है। फिर कुछ ऐसी घटनाएँ घटनी शुरू होती हैं कि उसकी ज़िंदगी का चक्र उसी के विरुद्ध घूमना शुरू हो जाता है।
मिसेज़ अब्दुल क़ादिर
खुल बंधना
पूर्णमासी को एक मंदिर में लगने वाले मेले के गिर्द घूमती यह कहानी स्त्री विमर्श पर बात करती है। मंदिर में लगने वाला मेला ख़ास तौर से औरतों के लिए ही है, जहाँ वह परिवार में चल रहे झगड़ों, पतियों, सास और ननदों की तरफ़ से लगाए बंधनों के खुलने की मन्नतें माँगती हैं। साथ ही वे परिवार और समाज में औरत की स्थिति पर भी बातचीत करती जाती हैं।
मुमताज़ मुफ़्ती
नया मकान
कहानी एक ऐसे शख़्स की है जो बीवी-बच्चों की मौत के बाद दुनिया को तर्क कर देता है और महज़ इबादत-गुज़ारी के लिए नया मकान बनवाना शुरू कर देता है। मकान की तामीर को देखने के लिए वह हर रोज़ वहाँ जाता है। एक दिन उसे वहाँ एक नौजवान मज़दूरन दिखाई देती है और वह उसकी मुस्कुराहट पर फ़िदा हो जाता है। धीरे-धीरे वह उसके साथ शादी करने और नए मकान में बस जाने के बारे में भी सोचने लगता है। मगर एक दिन उसे पता चलता है कि वह मज़दूरन एक दूसरे शख़्स के साथ भाग गई है।