आम
यह एक ऐसे बूढ़े मुंशी की कहानी है जो पेंशन के बूते अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है। अपने अच्छे स्वभाव के कारण उसकी अमीर लोगों से जान-पहचान है। लेकिन उन अमीरों में दो लोग ऐसे भी हैं जो उसे बहुत प्रिय हैं। उनके लिए वह हर साल आम के मौसम में अपने परिवार वालों की इच्छाओं का गला घोंट कर आम के टोकरे भिजवाता है। मगर इस बार की गर्मी इतनी भयानक थी कि वह बर्दाश्त न कर सका और उसकी मौत हो गई। उसके मरने की सूचना जब उन दोनों अमीर-ज़ादों को दी गई तो दोनों ने ज़रूरी काम का बहाना करके उसके घर आने से इनकार कर दिया।
सआदत हसन मंटो
लालटेन
इस कहानी में लेखक ने अपने कश्मीर दौरे के कुछ यादगार लम्हों का बयान किया है। हालाँकि लेखक को यक़ीन है कि वह एक अच्छा क़िस्सा-गो नहीं है और न ही अपनी यादों को ठीक से बयान कर सकता है। फिर भी बटोत (कश्मीर) में बिताए अपने उन क्षणों को वह बयान किए बिना नहीं रह पाता, जिनमें उसकी वज़ीर नाम की लड़की से मुलाक़ात हुई थी। उस मुलाक़ात के कारण वह अपने दोस्तों में बहुत बदनाम भी हुआ था। वज़ीर ऐसी लड़की थी कि जब लेखक अपने दोस्त के साथ रात को टहलने निकलता था तो सड़क के किनारे उन्हें रास्ता दिखाने के लिए लालटेन लेकर खड़ी हो जाती थी।
सआदत हसन मंटो
ऐक्ट्रेस की आँख
यह एक नीम मज़ाहिया कहानी है। देवी नाम की ऐक्ट्रेस जो ख़ूबसूरत तो नहीं है लेकिन पुर-कशिश बहुत है। एक बार वह आँख में गर्द पड़ जाने की वजह से नाटकीय ढंग से चीखती है। उसके हाय हाय से सेट पर मौजूद हर शख़्स उसकी आँखों से गर्द निकालने की भरसक कोशिश करता है लेकिन नाकाम रहता है। एक साहब बाहर से आते हैं और गर्द निकालने में कामयाब हो जाते हैं। ठीक होते ही ऐक्ट्रेस सभी को नज़रअंदाज़ कर के सेठ के पास चली जाती है और सब ललचाई नज़रों से देखते रह जाते हैं।
सआदत हसन मंटो
भंगन
एक संदेह के कारण पति-पत्नी के बीच हुई तकरार पर आधारित कहानी। वह जब रात को पत्नी के पास जाता है तो पत्नी नाराज़़गी में उसे अपने से दूर कर देती है। वह उसे मनाने की कोशिश करता है, पर वह लगातार उससे नाराज़़ रहती है। आख़िर में जब वह पूछती है कि उसने सुबह भंगन को अपनी बाँहों में क्यों लिया था तो पति बताता है कि वह गर्भवती थी और बेहोश हो कर गिरने वाली थी। उसने तो बस उसे गिरने से बचाने के लिए सँभाल लिया था। पत्नी यह सुनकर ख़ुश हो गई।
सआदत हसन मंटो
ये परी चेहरा लोग
हर इंसान अपने स्वभाव और चरित्र से जाना जाता है। सख़्त मिज़ाज बेगम बिल्क़ीस तुराब अली एक दिन माली से बाग़ीचे की सफ़ाई करवा रही थी कि वह मेहतरानी और उसकी बेटी की बातचीत सुन लेती है। बातचीत में माँ-बेटी बेगमों के असल नाम न लेकर उन्हें तरह-तरह के नामों से बुलाती हैं। यह सुनकर बिल्क़ीस बानो उन दोनों को अपने पास बुलाती हैं। वह उन सब नामों के असली नाम पूछती है और जानना चाहती हैं कि उन्होंने उसका नाम क्या रखा है? मेहतरानी उसके सामने तो मना कर देती है लेकिन उसने बेगम बिल्कीस का जो नाम रखा होता है वह अपने शौहर के सामने ले देती है।
ग़ुलाम अब्बास
क़ादिरा क़साई
अपने ज़माने की एक ख़ूबसूरत और मशहूर वेश्या की कहानी। उसके कोठे पर बहुत से लोग आया करते थे। सभी उससे मोहब्बत का इज़हार किया करते थे। उनमें एक ग़रीब शख़्स भी उससे मोहब्बत का दावा करता था। वेश्या ने उसकी मोहब्बत को ठुकरा दिया। वेश्या के यहाँ एक बेटी हुई। वह भी बहुत ख़ूबसूरत थी। जिन दिनों उसकी बेटी की नथ उतरने वाली थी उन्हीं दिनों देश का विभाजन हो गया। इसमें वेश्या मारी गई और उसकी बेटी पाकिस्तान चली गई। यहाँ भी उसने अपना कोठा जमाया। जल्द ही उसके कई चाहने वाले निकल आए। वह जिस शख़्स को अपना दिल दे बैठी थी वह एक क़ादिरा कसाई था, जिसे उसकी मोहब्बत की कोई ज़रूरत नहीं थी।
सआदत हसन मंटो
पाँच दिन
बंगाल के अकाल की मारी हुई सकीना की ज़बानी एक बीमार प्रोफे़सर की कहानी बयान की गई है, जिसने अपने चरित्र को बुलंद करने के नाम पर अपनी फ़ित्री ख़्वाहिशों को दबाए रखा। सकीना भूख से बेचैन हो कर एक दिन जब उसके घर में चली आती है तो प्रोफे़सर कहता है कि तुम इसी घर में रह जाओ, मैं दस बरस तक स्कूल में लड़कियों को पढ़ाता रहा इसलिए उन्हीं बच्चियों की तरह तुम भी एक बच्ची हो। लेकिन मरने से पाँच दिन पहले वह स्वीकार करता है कि उसने हमेशा सकीना सहित उन सभी लड़कियों को जिन्हें उसने पढ़ाया है हमेशा ग़लत निगाहों से देखा है।
सआदत हसन मंटो
हारता चला गया
एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसे जीतने से ज़्यादा हारने में मज़ा आता है। बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद फ़िल्मी दुनिया में उसने बे-हिसाब दौलत कमाई थी। यहाँ उसने इतनी दौलत कमाई कि वह जितना ख़र्च करता उससे ज़्यादा कमा लेता। एक रोज़ वह जुआ खेलने जा रहा था कि उसे इमारत के नीचे ग्राहकों को इंतज़ार करती एक वेश्या मिली। उसने उसे दस रूपये रोज़ देने का वादा किया, ताकि वह अपना धंधा बंद कर सके। कुछ दिनों बाद उसने देखा कि वह वेश्या फिर खिड़की पर बैठी ग्राहक का इंतेज़ार कर रही। पूछने पर उसने ऐसा जवाब दिया कि वे व्यक्ति ला-जवाब हो कर ख़ामोश हो गया।
सआदत हसन मंटो
बहरूपिया
हर पल रूप बदलते रहने वाले एक बहरूपिये की कहानी, जिसमें उसका अपना असली रूप कहीं खोकर रह गया है। वह हफ़्ते में एक-दो बार मोहल्ले में आया करता था। देखने में काफ़ी आकर्षक था और हर किसी से मज़ाक़ किया करता था। एक दिन एक छोटे लड़के ने उसे देखा तो वह उससे ख़ासा प्रभावित हुआ और फिर अपने दोस्त को साथ लेकर वे उसका पीछा करता हुआ, उसके असली रूप की तलाश में निकल पड़ा।
ग़ुलाम अब्बास
चोरी
यह एक ऐसे बूढ़े बाबा की कहानी है जो अलाव के गिर्द बैठ कर बच्चों को अपनी ज़िंदगी से जुड़ी कहानी सुनाता है। कहानी उस वक़्त की है जब उसे जासूसी नॉवेल पढ़ने का दीवानगी की हद तक शौक़ था और अपने उस शौक़ को पूरा करने के लिए उसने किताबों की एक दुकान से अपनी पसंद की एक किताब चुरा ली थी। उस चोरी ने उसकी ज़िंदगी को कुछ इस तरह बदला कि वह सारी उम्र के लिए चोर बन गया।
सआदत हसन मंटो
ख़ोरेश्ट
यह कहानी समाज के एक नाज़ुक पहलू को सामने लाता है। सरदार ज़ोरावर सिंह, सावक कापड़िया का लंगोटिया यार है। अपना अक्सर वक़्त उसके घर पर गुज़ारता है। दोस्त होने की वजह से उसकी बीवी ख़ुर्शीद से भी बे-तकल्लुफ़ी है। सरदार हर वक़्त ख़ुरशीद की आवाज़ की तारीफ़ करता है और उसके लिए मुनासिब स्टूडियो की तलाश में रहता है। अपने उन उपायों से वो ख़ुर्शीद को राम कर के उससे शादी कर लेता है।
सआदत हसन मंटो
हामिद का बच्चा
हामिद नाम के एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो मौज-मस्ती के लिए एक वेश्या के पास जाता रहता है। पर जल्दी ही उसे पता चलता है कि वह वेश्या उससे गर्भवती हो गई है। इस ख़बर को सुनकर हामिद डर जाता है। वह वेश्या को उसके गाँव छोड़ आता है। उसके बाद वह योजना बनाता है कि जैसे ही बच्चा पैदा होगा वह उसे दफ़न कर देगा। मगर बच्चे की पैदाइश के बाद जब वह उसे दफ़न करने गया तो उसने एक नज़र बच्चे को देखा। बच्चे की शक्ल हू-ब-हू उस वेश्या के दलाल से मिलती थी।
सआदत हसन मंटो
ख़ुदकुशी
यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसके यहाँ शादी के बाद बेटी का जन्म होता है। लाख कोशिशों के बाद भी वह उसका कोई अच्छा सा नाम नहीं सोच पाता है। नाम की तलाश के लिए वह डिक्शनरी ख़रीदता है, पर जब तक डिक्शनरी लेकर वह घर पहुँचता है तब तक बेटी की मौत हो चुकी होती है। बेटी की मौत के दुख में कुछ ही दिनों बाद उसकी पत्नी की भी मृत्यु हो जाती है। ज़िंदगी के दिए उन दुखों से तंग आकर वह आत्महत्या करने की सोचता है। इस उद्देश्य से वह रेलवे लाइन पर जाता है मगर वहाँ पहले से ही एक दूसरा व्यक्ति लाइन पर लेटा होता है। सामने से आ रही ट्रेन को देखकर वह उस व्यक्ति को बचा लेता है और उस से ऐसी बातें कहता है कि उन बातों से उसकी ख़ुद की ज़िंदगी पूरी तरह बदल जाती है।
सआदत हसन मंटो
अब्जी डूडू
यह पति-पत्नी के बीच रात में शारीरिक संबंधों को लेकर होने वाली नोक-झोंक पर आधारित कहानी है। पति पत्नी के साथ सोना चाहता है, जबकि पत्नी उसे लगातार इनकार करती रहती है। उसके इनकार को इक़रार में बदलने के लिए पति उसे हर तरह का प्रलोभन देता है, पर वह मानती नहीं। आख़िर में वह अपना आख़िरी दाँव चलता है और उसी में पत्नी को पस्त कर देता है।
सआदत हसन मंटो
गिलगित ख़ान
यह होटल में काम करने वाले एक बहुत बदसूरत नौकर की कहानी है। उसकी बदसूरती के कारण उसका मालिक उसे पसंद करता है और न ही वहाँ आने वाले ग्राहक। मगर अपनी मेहनत और शिष्टाचार से वह सभी का लोकप्रिय बन जाता है। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए वह मालिक की नापसंदगी के बावजूद एक कुत्ते का पिल्ला पाल लेता है। बड़ा होने पर कुत्ते को पेट की कोई बीमारी हो जाती है, तो उसे ठीक करने के लिए गिलगित ख़ान चोरी से अपने मालिक का बटेर मारकर कुत्ते को खिला देता है।
सआदत हसन मंटो
जुवारी
यह एक शिक्षाप्रद और हास्य शैली में लिखी गई कहानी है। जुवारियों का एक समूह बैठा हुआ ताश खेल रहा था कि उसी वक़्त पुलिस वहाँ छापा मार देती है। पुलिस के पकड़े जाने पर हर जुवारी अपनी इज्ज़त और काम को लेकर परेशान होता है। जुवारियों का मुखिया नक्को उन्हें दिलासा देता है कि थानेदार उसका जानने वाला है और जल्द ही वे छूट जाएँगे। लेकिन छोड़ने से पहले थानेदार उन्हें जो सज़ा देता है वह काफ़ी दिलचस्प है।
ग़ुलाम अब्बास
निक्की
यह अफ़साना एक ऐसी औरत की दास्तान को बयान करता है जिसका मर्द हर वक़्त उसे मारा-पीटा करता था। फिर उसने एक तवायफ़ के कहने पर उसे तलाक़ दे दी। मर्द की पिटाई के बाद उस औरत में जो ग़ुस्सा और नफ़रत जमा हो गई थी वह नए मोहल्ले में आकर निकलने लगी। वह बात-बात पर पड़ोसियों से उलझने लगी, उनसे लड़ने लगी और फिर आगे चलकर उसने इस हुनर को अपना पेश बना लिया, अपने लड़ने की फ़ीस तय कर दी। लड़ना-झगड़ना उसके ख़ून में ऐसा रच-बस गया कि उसे दौरे पड़ने लगे और पड़ोसियों को गाली बकते हुए ही उसकी मौत हो गई।
सआदत हसन मंटो
इफ़्शा-ए-राज़
यह कहानी पति-पत्नी के बीच पंजाबी भाषा के एक गीत को लेकर हुए झगड़े पर आधारित है। पति एक दिन नहाते हुए पंजाबी का कोई गीत गाने लगा तो पत्नी ने उसे टोक दिया, क्योंकि उसे पंजाबी भाषा समझ में नहीं आती थी। इस पर पति ने उसे कई ढंग से समझाने की कोशिश की मगर बात नहीं बनी। तभी नौकर डाक लेकर आ गया। पत्नी ने पति की इजाज़त के बिना डाक खोली तो वह एक महिला का पत्र था, जिसमें उसी गीत की कुछ लाइनें लिखी हुई थीं, जो उसका पति कुछ देर पहले गुनगुना रहा था।
सआदत हसन मंटो
गूँदनी
दोहरी ज़िंदगी जीते एक ऐसे शख़्स की कहानी जो चाहकर भी खुलकर अपने एहसासात का इज़हार नहीं कर पाता। मिर्ज़ा बिर्जीस का ख़ानदान किसी ज़माने में बहुत दौलतमंद था लेकिन इस वक़्त इस ख़ानदान की हालत दिगरगूँ है। इसके बावजूद मिर्ज़ा उसी शान-ओ-शौकत और ठाट-बाट के साथ रहने का ढोंग करता है। एक रोज़ बाज़ार में कुछ ख़रीदारी करते हुए भिखारी ने उससे खाना माँगा तो उसने उसे झिड़क दिया। मगर शाम को सिनेमा में एक फ़िल्म देखते हुए जब उसने एक बुढ़िया को भीख माँगते देखा तो वह रो दिया।
ग़ुलाम अब्बास
मजीद का माज़ी
ऐश-ओ-आराम में ज़िंदगी बसर करते हुए अपने अतीत को याद करने वाले एक अमीर शख़्स की कहानी है। वह अब बहुत अमीर है। उसके पास कोठी है, अच्छी तनख़्वाह है, बीवी-बच्चे हैं और हर तरह का आराम नसीब है। इन सब के बीच उसकी शांति न जाने कहाँ खो गई है। वह शांति जो उसे यह सब हासिल होने से पहले थी जब उसकी तनख़्वाह कम थी, बीवी-बच्चे नहीं थे, कारोबार था और न ही दूसरे झमेले। वह शांति से दो पैसे कमाता था और चैन से सोता था। अब सारे ऐश-ओ-आराम के बाद भी उसे वह शांति नसीब नहीं है।
सआदत हसन मंटो
सौदा बेचने वाली
जमील और सुहैल नाम के दो दोस्तों की कहानी। जमील को एक पार्टी में जमीला नाम की लड़की से मोहब्बत हो जाती है। सुहैल को जमीला पसंद नहीं आती, पर वह अपने दोस्त की ख़ुशी की ख़ातिर मान जाता है। उधर जमीला की बड़ी बहन हमीदा भी जमील से मोहब्बत करती है। एक रोज़़ जमील जमीला को उसके घर से भगाकर सुहैल के यहाँ छोड़ जाता है। उसके पीछे सुहैल जमीला से शादी कर लेता है। वहाँ से मायूस होने पर जमील हमीदा से शादी कर लेता है। एक दिन जब वह एक पार्क में जमीला को देखता है तो वह उसे कोई सौदा बेचने वाली की तरह नज़र आती है।
सआदत हसन मंटो
ख़ुशबूदार तेल
यह मालिक और घर में काम करने वाली नौकरानी के बीच चल रहे अवैध संबंधों पर आधारित कहानी है। दोनों मियाँ बीवी में किसी बात को लेकर कहा-सुनी हो जाती है। इसी कहा-सुनी में उसकी बीवी बताती है कि उसने नौकरानी को निकाल दिया है। जब वह इसका कारण पूछता है तो वह बताती है कि उसके सिर में से भी उसी तेल की ख़ुश्बू आती थी जो उसके मियाँ के सिर में से आ रही है।
सआदत हसन मंटो
तीन में ना तेरह में
यह कहानी पति-पत्नी के बीच होने वाली तकरार पर आधारित है। पत्नी अपने पति से नाराज़़ है और उसके साथ झगड़ा करते हुए वह मुहावरों का इस्तेमाल करती है। पति उसके हर मुहावरे का जवाब देता है और वे दोनों झगड़ते हुए औरत-मर्द के संबंध, शादी और घरेलू ज़रूरियात के बारे में बड़ी दिलचस्प गुफ़्तगू करते जाते हैं।
सआदत हसन मंटो
रहमत-ए-खु़दा-वंदी के फूल
यह एक ऐसे शराबी शख़्स की कहानी है जो जितना बड़ा शराबी है, उतना ही बड़ा कंजूस है। वह दोस्तों के साथ शराब पीने से बचता है, क्योंकि इससे उसे ज़्यादा रूपये ख़र्च करने पड़ते हैं। लेकिन वह घर में भी नहीं पी सकता, क्योंकि इससे पत्नी के नाराज़़ हो जाने का डर रहता है। इस मुश्किल का हल वह कुछ इस तरह निकालता है कि पेट के दर्द का बहाना कर के दवाई की बोतल में शराब ले आता है और बीवी से हर पंद्रह मिनट के बाद एक ख़ुराक देने के लिए कहता है। इससे उसकी यह मुश्किल तो हल हो जाती है। मगर एक दूसरी मुश्किल उस वक़्त पैदा होती है जब एक रोज़ उसकी पत्नी पेट के दर्द के कारण उसी बोतल से तीन पैग पी लेती है।
सआदत हसन मंटो
ताँगे वाले का भाई
कहानी एक ऐसे शख़्स की है जिसे जवानी में हुए एक हादसे के चलते औरत ज़ात से नफ़रत हो जाती है। वह उसकी जवानी की बहारों के दिन थे जब एक दिन अपने दोस्तों के साथ बैठा वह शराब पी रहा था कि अचानक ख़याल आया कि इस मौक़े पर कोई लड़की होनी चाहिए। दोस्तों के इसरार पर उसने एक ताँगे वाले से लड़की का इंतिज़ाम करने के लिए कहा। ताँगे वाला रात को एक बुर्क़ा-पोश को ताँगे में बिठा लाया। मगर कमरे में जाकर जब उसने उस औरत का नकाब खोला तो दंग रह गया। बुर्क़े में कोई औरत नहीं बल्कि हिजड़ा था, जिसने ख़ुद को ताँगे वाले का भाई बताया था।
सआदत हसन मंटो
ख़ाँ साहब
कहानी एक ऐसे शख़्स के गिर्द घूमती है, जो बहुत दीनदार है मगर इतना कंजूस है कि उसकी बीवी-बेटी बहुत मुफ़्लिसी में गुज़ारा करती हैं। उसकी बीवी बेटी को अच्छी परवरिश के लिए एक औरत के पास छोड़ देती है, तो बदले में वह उस औरत से पैसे भी माँगता है। औरत पैसे तो नहीं देती, हाँ एक पढ़े-लिखे लड़के से उसका रिश्ता तय कर देती है। मगर कम मेहर और नकद न मिलने की वजह से वह धोखे से अपनी बेटी की शादी एक अमीर और अधेड़ उम्र के शख़्स से करा देता है।
मोहम्मद मुजीब
वो कौन थी?
एक बहुत ही मज़हबी शख़्स और उसके ख़ानदान की कहानी है। उस शख़्स के दो घर हैं, एक में वह अपनी फ़ैमिली के साथ रहता है और दूसरा मकान ख़ाली पड़ा हुआ है। अपने ख़ाली मकान को किसी शरीफ़ और नेक शख़्स को किराए पर देना चाहता है। फिर एक दिन उस घर में एक औरत आकर रहने लगती है और वह शख़्स उसके पास जाने लगता है। इस बारे में जब उसकी बीवी और घर के लोगों को पता चलता है तो कहानी एक नया मोड़ लेती है और वो मज़हबी और दीनदार शख़्स अपने घर वालों की निगाहों में क़ाबिल-ए-नफ़रीन बन जाता है।
मिर्ज़ा अदीब
शादी
यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है, जो पाँच साल तक पश्चिमी सभ्यता में पला-बढ़ा है। उसने वहाँ के साहित्य को पढ़ा और समाज में पूरी तरह रच बस गया है। जब वह हिंदुस्तान लौटता है तो परिवार वाले उसकी शादी करने के लिए कहते हैं मगर वह बिना देखे, मिले किसी लड़की से शादी करने पर राज़ी नहीं होता। तीन साल तक ना-नूकुर करने के बाद आख़िर-कार वह मान ही जाता है। शादी होने के बाद वह अनजान होने पर बीवी के पास जाने से कतराता है। फिर एक रात तन्हा लेटे हुए कुछ नॉवेल के हिस्से याद आते हैं और वह अपनी बीवी की चाहत में तड़प उठता है और उसके पास चला जाता है।
अहमद अली
नया मकान
कहानी एक ऐसे शख़्स की है जो बीवी-बच्चों की मौत के बाद दुनिया को तर्क कर देता है और महज़ इबादत-गुज़ारी के लिए नया मकान बनवाना शुरू कर देता है। मकान की तामीर को देखने के लिए वह हर रोज़ वहाँ जाता है। एक दिन उसे वहाँ एक नौजवान मज़दूरन दिखाई देती है और वह उसकी मुस्कुराहट पर फ़िदा हो जाता है। धीरे-धीरे वह उसके साथ शादी करने और नए मकान में बस जाने के बारे में भी सोचने लगता है। मगर एक दिन उसे पता चलता है कि वह मज़दूरन एक दूसरे शख़्स के साथ भाग गई है।
मोहम्मद मुजीब
बुन बस्त
"कहानी में दो ज़माने और दो अलग तरह के रवय्यों का टकराव नज़र आता है। कहानी का मुख्य पात्र अपने बे-फ़िक्री के ज़माने का ज़िक्र करता है जब शहर का माहौल पुर-सुकून था। दिन निकलने से लेकर शाम ढ़लने तक वो शहर में घूमता फिरता था लेकिन एक ज़माना ऐसा आया कि ख़ौफ़ के साये मंडलाने लगे, फ़सादात होने लगे। एक दिन वो बलवाइयों से जान बचा कर भागता हुआ एक तंग गली के तंग मकान में दाख़िल होता है तो उसे वो मकान पुर-असरार और उसमें मौजूद औरत खौफ़ज़दा मालूम होती है, इसके बावजूद उसके खाने पीने का इंतिज़ाम करती है, लेकिन ये उसके ख़ौफ़ की परवाह किए बिना दरवाज़ा खोल कर वापस लौट आता है।"
नैयर मसूद
खुल बंधना
पूर्णमासी को एक मंदिर में लगने वाले मेले के गिर्द घूमती यह कहानी स्त्री विमर्श पर बात करती है। मंदिर में लगने वाला मेला ख़ास तौर से औरतों के लिए ही है, जहाँ वह परिवार में चल रहे झगड़ों, पतियों, सास और ननदों की तरफ़ से लगाए बंधनों के खुलने की मन्नतें माँगती हैं। साथ ही वे परिवार और समाज में औरत की स्थिति पर भी बातचीत करती जाती हैं।
मुमताज़ मुफ़्ती
वो तरीक़ा तो बता दो तुम्हें चाहें क्यूँकर?
यह नौजवान मोहब्बत की कहानी है। एक नौजवान एक लड़की से बेहद मोहब्बत करता है लेकिन लड़की उसके मोहब्बत के इज़हार के हर ढंग को दक़ियानूसी, पुराना और बोर कहती रहती है। फिर एकाएक जब नौजवान उसे धमकी देता हुआ अपनी मोहब्बत का इज़हार करता है तो लड़की मान जाती है कि उसमें मोहब्बत को ज़ाहिर करने की सलाहियत मौजूद है।