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रद करें डाउनलोड शेर

त्रास्दी पर कहानियाँ

प्रेम कहानी

मोहब्बत का इज़हार करना भी उतना ही ज़रूरी है जितना की मोहब्बत करना है। अगर आप इज़हार नहीं करेंगे तो अपने हाथों अपनी मोहब्बत का क़त्ल कर देंगे। यह कहानी भी एक ऐसे ही क़त्ल की दास्तान है। नायक एक लड़की से बे-पनाह मोहब्बत करता है। एक दिन वह उसके साथ एक साईकिल ट्रिप पर भी जाता है। मौसम बहुत खु़शगवार है लेकिन वह चाहने के बाद भी इज़हार नहीं कर पाता है। उसके इज़हार न करने के कारण लड़की उससे दूर हो जाती है और फिर कभी उसके पास नहीं आती है। हालांकि वह उससे बीच-बीच में मुलाक़ात करती है। मोहब्बत करने और उसका इज़हार न करने पर इंसान की क्या हालत होती है वह आप इस कहानी को पढ़ कर जान सकते हैं।

अहमद अली

औलाद

ये औलाद न होने के दुख में पागल हो गई एक औरत की कहानी है। ज़ुबैदा की शादी के बाद ही उसके बाप की मौत हो गई तो वह अपनी माँ को अपने घर ले आई। माँ-बेटी एक साथ रहने लगीं तो माँ को इस बात की चिंता हुई कि उसकी बेटी को अभी तक बच्चा क्यों नहीं हुआ। बच्चे के लिए माँ ने बेटी का हर तरह का इलाज कराया, पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। माँ दिन-रात उसे औलाद न होने के ताने देती रहती है तो उसका दिमाग़़ चल जाता है और हर तरफ़ उसे बच्चे ही नज़र आने लगते हैं। उसके इस पागलपन को देखकर उसका शौहर एक नवजात शिशु को उसकी गोद में लाकर डाल देता है। जब उसके लिए उसकी छातियों से दूध नहीं उतरता है तो वह उस्तरे से अपनी छातियों को काटती जिससे उसकी मौत हो जाती है।

सआदत हसन मंटो

बादशाहत का ख़ात्मा

"सौन्दर्य व आकर्षण के इच्छुक एक ऐसे बेरोज़गार नौजवान की कहानी है जिसकी ज़िंदगी का अधिकतर हिस्सा फ़ुटपाथ पर रात बसर करते हुए गुज़रा था। संयोगवश वो एक दोस्त के ऑफ़िस में कुछ दिनों के लिए ठहरता है जहां एक लड़की का फ़ोन आता है और उनकी बातचीत लगातार होने लगती है। मोहन को लड़की की आवाज़ से इश्क़ है इसलिए उसने कभी उसका नाम, पता या फ़ोन नंबर जानने की ज़हमत नहीं की। दफ़्तर छूट जाने की वजह से उसकी जो 'बादशाहत' ख़त्म होने वाली थी उसका विचार उसे सदमे में मुब्तला कर देता है और एक दिन जब शाम के वक़्त टेलीफ़ोन की घंटी बजती है तो उसके मुँह से ख़ून के बुलबुले फूट रहे होते हैं।"

सआदत हसन मंटो

आवारा-गर्द

दुनिया की सैर पर निकले एक यूरोपीय जर्मन लड़के की कहानी। वह पाकिस्तान से भारत आता है और बंबई में एक सिफ़ारिशी मेज़बान का मेहमान बनता है। बंबई में वह कई दिन रुकता है, लेकिन सारा सफ़र पैदल ही तय करता है। रात को खाने की मेज़ पर अपनी मेज़बान से वह यूरोप, जर्मन, द्वितीय विश्व युद्ध, नाज़ी और अपने अतीत के बारे में बात करता है। भारत से वह श्रीलंका जाता है जहाँ सफ़र में एक सिंघली बौद्ध उसका दोस्त बन जाता है। वह दोस्त उसे नदी में नहाने की दावत देता है और खु़द डूबकर मर जाता है। लंका से होता हुआ है वह सैलानी लड़का वियतनाम जाता है। वियतनाम में जंग जारी है और जंग की एक गोली उस नौजवान यूरोपीय आवारागर्द को भी लील जाती है।

क़ुर्रतुलऐन हैदर

रज़्ज़ो बाजी

पहला प्यार भुलाए नहीं भूलता है। एक अर्से बाद रज़्ज़ो बाजी का ख़त आता है। वही रज़्ज़ो जो पंद्रह साल पहले हमारे इलाके़ के मशहूर मोहर्रम देखने आई थीं। उसी मोहर्रम में हीरो की उनसे मुलाकात हुई थी और वहीं वह एहसास उभरा था जिसने रज़्ज़ो बाजी को फिर कभी किसी का न होने दिया। अपनी माँ के जीते जी रज़्ज़ो बाजी ने कोई रिश्ता क़बूल नहीं किया। फिर जब माँ मर गई और बाप पर फ़ालिज गिर गया तो रज़्ज़ो बाजी ने एक रिश्ता क़बूल कर लिया। लेकिन शादी से कुछ अर्से पहले ही उन पर जिन्नात आने लगे और शादी टूट गई। इसके बाद रज़्ज़ो बाजी ने कभी किसी से रिश्ते की बात न की। सिर्फ़ इसलिए कि वह मोहर्रम में हुए अपने उस पहले प्यार को भूला नहीं सकी थीं।

क़ाज़ी अबदुस्सत्तार

क्वारंटीन

कहानी में एक ऐसी वबा के बारे में बताया गया है जिसकी चपेट में पूरा इलाक़ा है और लोगों की मौत निरंतर हो रही है। ऐसे में इलाके़ के डॉक्टर और उनके सहयोगी की सेवाएं प्रशंसनीय हैं। बीमारों का इलाज करते हुए उन्हें एहसास होता है कि लोग बीमारी से कम और क्वारंटीन से ज़्यादा मर रहे हैं। बीमारी से बचने के लिए डॉक्टर खु़द को मरीज़ों से अलग कर रहे हैं जबकि उनका सहयोगी भागू भंगी बिना किसी डर और ख़ौफ़ के दिन-रात बीमारों की सेवा में लगा हुआ है। इलाक़े से जब महामारी ख़त्म हो जाती है तो इलाक़े के गणमान्य की तरफ़ से डॉक्टर के सम्मान में जलसे का आयोजन किया जाता है और डॉक्टर के काम की तारीफ़ की जाती है लेकिन भागू भंगी का ज़िक्र तक नहीं होता।

राजिंदर सिंह बेदी

ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे

यह कहानी पश्चिमी जर्मनी में जा रही एक ट्रेन से शुरू होती है। ट्रेन में पाँच लोग सफ़र कर रहे हैं। उनमें एक ब्रिटिश प्रोफे़सर है और उसके साथ उसकी बेटी है। साथ में एक कनाडाई लड़की और एक ईरानी प्रोफेसर हैं। शुरू में सब ख़ामोश बैठे रहते हैं। फिर धीरे-धीरे आपस में बातचीत करने लगता है। बातचीत के दौरान ही कनाडाई लड़की ईरानी प्रोफे़सर को पसंद करने लगती है। ट्रेन का सफ़र ख़त्म होने के बाद भी वे मिलते रहते हैं और अपने ख़ानदानी शजरों की उधेड़-बुन में लगे रहते हैं। उसी उधेड़-बुन में वे एक-दूसरे के क़रीब आते हैं और एक ऐसे रिश्ते में बंध जाते हैं जिसे कोई नाम नहीं दिया जाता। चारों तरफ जंग का माहौल है। ईरान में आंदोलन हो रहे हैं। इसी बीच एक दिन एयरपोर्ट पर धमाका होता है। उस बम-धमाके में ईरानी प्रोफे़सर और उसके साथी मारे जाते हैं। उस हादसे का कनाडाई लड़की पर जो असर पड़ता है वही इस कहानी का निष्कर्ष है।

क़ुर्रतुलऐन हैदर

ख़ुदकुशी

यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसके यहाँ शादी के बाद बेटी का जन्म होता है। लाख कोशिशों के बाद भी वह उसका कोई अच्छा सा नाम नहीं सोच पाता है। नाम की तलाश के लिए वह डिक्शनरी ख़रीदता है, पर जब तक डिक्शनरी लेकर वह घर पहुँचता है तब तक बेटी की मौत हो चुकी होती है। बेटी की मौत के दुख में कुछ ही दिनों बाद उसकी पत्नी की भी मृत्यु हो जाती है। ज़िंदगी के दिए उन दुखों से तंग आकर वह आत्महत्या करने की सोचता है। इस उद्देश्य से वह रेलवे लाइन पर जाता है मगर वहाँ पहले से ही एक दूसरा व्यक्ति लाइन पर लेटा होता है। सामने से आ रही ट्रेन को देखकर वह उस व्यक्ति को बचा लेता है और उस से ऐसी बातें कहता है कि उन बातों से उसकी ख़ुद की ज़िंदगी पूरी तरह बदल जाती है।

सआदत हसन मंटो

रहमान के जूते

जूते के ऊपर जूते चढ़ जाने को किसी सफ़र से जोड़ कर अँधविश्वास को बयान करती एक मर्मस्पर्शी कहानी। खाना खाते वक्त रहमान का जूता दूसरे जूते पर चढ़ा तो उसकी बीवी ने कहा कि उसे अपनी बेटी जीना से मिलने जाना है। जीना से मिलने जाने के लिए उसकी माँ ने बहुत सारी तैयारियाँ कर रखी थीं। फिर वह अपनी बेटी से मिलने के लिए सफ़र पर निकल पड़ा और सफ़र में उसके सामान की गठरी कहीं गुम हो जाती है जिसके लिए वह एक कांस्टेबल से उलझ जाता है। ज़ख़्मी हालत में उसे अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। वहाँ भी उसका जूता दूसरे पर चढ़ा हुआ है जो इस बात का इशारा था कि वह अब एक लंबे सफ़र पर जाने वाला है।

राजिंदर सिंह बेदी

डरपोक

यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है जो औरत की शदीद ख़्वाहिश होने के चलते रंडीख़ाने पर जाता है। उसने अभी तक की अपनी ज़िंदगी में किसी औरत को छुआ तक नहीं था। न ही उसने अभी तक किसी से इज़हार-ए-मोहब्बत किया था। ऐसा नहीं था कि उसे कभी कोई मौक़ा न मिला हो। मगर उसे जब भी कोई मौक़ा मिला वह किसी अनजाने ख़ौफ़़ के चलते उस पर अमल न कर सका। मगर पिछले कुछ दिनों से उसे औरत की बेहद ख़्वाहिश हो रही थी। इसलिए वह उस जगह तक चला आया था। रंडीख़ाना उससे एक गली दूर था, पर पता नहीं किस डर के चलते उस गली को पार नहीं कर पा रहा था। अंधेरे में तन्हा खड़ा हुआ वह आस-पास के माहौल को देखता है और अपने डर पर क़ाबू पाने की कोशिश करता है। मगर इस से पहले कि वह डर को अपने क़ाबू में करे, डर उसी पर हावी हो गया और वह वहाँ से ऐसे ही ख़ाली हाथ लौट गया।

सआदत हसन मंटो

हरनाम कौर

अपने ज़माने में ताक़त और अपने बल के चलते मशहूर रहे एक सिख जट की कहानी। अब उसके पास केवल एक बेटा बहादुर सिंह है जिसकी परवरिश बीवी की मौत के बाद उसकी बहन ने की थी। मगर बहादुर सिंह में वह बात नहीं थी जो निहाल सिंह चाहता था। वह उसकी शादी को लेकर परेशान था। मगर बहादुर सिंह गाँव की किसी भी लड़की में दिलचस्पी ही नहीं लेता था। आख़िर में निहाल सिंह ने विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने वाले काफ़िले से बहादुर सिंह के लिए एक लड़की लूट ली। उसने उसे बहादुर सिंह के कमरे में डाल कर दरवाज़ा बंद कर दिया। मगर जब उसने सुबह दरवाज़ा खोला तो सामने बहादुर सिंह सूट-सलवार पहने बैठा था और क़ाफ़िले वाली लड़की चारपाई के नीचे से निकल कर बाहर भाग गई।

सआदत हसन मंटो

मालकिन

उस हवेली की पूरे इलाके में बड़ी ठाट थी। हर कोई उसके आगे सिर झुका कर चलता था। लेकिन विभाजन ने सब कुछ बदल दिया था और फिर उसके बाद 1950 के सैलाब ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। उसके बाद हवेली को लेकर हुई मुक़दमेबाज़ी ने भी मालकिन को किसी क़ाबिल न छोड़ा। मालकिन का पूरा ख़ानदान पाकिस्तान चला गया था। वहाँ से उनके एक चचा-ज़ाद भाई ने उन्हें बुलवा भी भेजा था लेकिन मालकिन ने जाने से मना कर दिया। वह अपना सारा काम चौधरी गुलाब से करा लिया करती थीं। बदलते वक़्त के साथ ऐसा समय भी आया कि हवेली की बची-खुची शान-ओ-शौकत भी जाती रही और वह किसी खंडहर में तब्दील हो गई। नौबत यहाँ तक आ गई कि मालकिन ने गुज़ारा करने के लिए कुर्ते सीने का काम शुरू कर दिया। इस काम में चौधरी गुलाब उनकी मदद करता है। लेकिन इस मदद को लोगों ने अपने ही तरह से लिया और दोनों को बदनाम करने लगे।

क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
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