शकेब जलाली
ग़ज़ल 59
नज़्म 14
अशआर 42
बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका
हम जिस पे मर मिटे वो हमारा न हो सका
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
कोई भूला हुआ चेहरा नज़र आए शायद
आईना ग़ौर से तू ने कभी देखा ही नहीं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे
तितलियाँ मंडला रही हैं काँच के गुल-दान पर
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ
आँखों को अब न ढाँप मुझे डूबते भी देख
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ को
ज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
पुस्तकें 6
चित्र शायरी 3
वीडियो 6
This video is playing from YouTube