aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
Urdu Ka Husn-e-Bayaan | Jashn-e-Rekhta 4th Edition 2017
शब्दार्थ
साँस रुकती है छलकते हुए पैमाने में
कोई लेता था तिरा नाम-ए-वफ़ा आख़िर-ए-शब
"बढ़ गया बादा-ए-गुल-गूँ का मज़ा आख़िर-ए-शब" ग़ज़ल से की मख़दूम मुहिउद्दीन
महत्वपूर्ण प्रगतिशील शायर और फ़िल्म गीतकार। फ़िल्म गीतकार जावेद अख़्तर के पिता