aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शब्दार्थ
हमेशा शेफ़्ता रखते हैं अपने हुस्न-ए-क़ुदरत का
ख़ुद उस की रूह हो जाते हैं जिस का तन बनाते हैं
"परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं" ग़ज़ल से की आग़ा हज्जू शरफ़