फ़रहत एहसास
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चित्र शायरी 22
जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज ख़ुद को बहाल करना है खोना नहीं है आज आँखों ने देखते ही उसे ग़ुल मचा दिया तय तो यही हुआ था कि रोना नहीं है आज ये रात अहल-ए-हिज्र के ख़्वाबों की रात है क़िस्सा तमाम करना है सोना नहीं है आज जो अपने घर में है वो है बाज़ार में नहीं होना किसी का शहर में होना नहीं है आज फिर तिफ़्ल-ए-दिल है दौलत-ए-दुनिया पे गिर्या-बार और मेरे पास कोई खिलौना नहीं है आज
अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत है दुनिया मिरे ज़ख़्मों की तलबगार बहुत है अब टूट रहा है मिरी हस्ती का तसव्वुर इस वक़्त मुझे तुझ से सरोकार बहुत है मिट्टी की ये दीवार कहीं टूट न जाए रोको कि मिरे ख़ून की रफ़्तार बहुत है हर साँस उखड़ जाने की कोशिश में परेशाँ सीने में कोई है जो गिरफ़्तार बहुत है पानी से उलझते हुए इंसान का ये शोर उस पार भी होगा मगर इस पार बहुत है