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Ghulam Abbas's Photo'

ग़ुलाम अब्बास

1909 - 1982 | कराची, पाकिस्तान

प्रवृत्ति निर्माता कहानीकार, अपने अफ़साने 'आनन्दी' के लिए विख्यात

प्रवृत्ति निर्माता कहानीकार, अपने अफ़साने 'आनन्दी' के लिए विख्यात

ग़ुलाम अब्बास की कहानियाँ

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कन-रस

भावनात्मक शोषण के द्वारा बहुत अय्यारी से एक शरीफ़ ख़ानदान को तवाएफ़ों की राह पर ले जाने की कहानी है। फ़य्याज़ को स्वाभाविक रूप से संगीत से लगाव था लेकिन घरेलू हालात और रोज़गार की परेशानी ने उसके इस शौक़ को दबा दिया था। अचानक एक दिन संगीत का माहिर एक फ़क़ीर उसे रास्ते में मिलता है। उसकी कला से प्रभावित हो कर फ़य्याज़ उसे घर ले आता है। फ़य्याज़ उससे संगीत की तालीम लेने लगता है। हैदरी ख़ान घर में इस क़दर घुल मिल जाता है कि जल्द ही वो उस्ताद से बाप बन जाता है। फ़य्याज़ की जवान होती बेटियों को भी संगीत की शिक्षा दी जाने लगती है। मोहल्ले वालों की शिकायत से मजबूर हो कर मालिक मकान फ़य्याज़ से मकान ख़ाली करवा लेता है तो हैदरी ख़ान फ़य्याज़ के परिवार को तवाएफ़ों के इलाक़े में मकान दिलवा देता है। सामान शिफ़्ट होने तक फ़य्याज़ और उसकी बीवी को इसकी भनक तक नहीं लगने पाती और रात में जब वो बालकनी में खड़े हो कर आस-पास के मकानात की रौनक़ देखते हैं तो दोनों हैरान रह जाते हैं।

अंधेरे में

"बीमार बाप को शराब पीते देखकर उसका इकलौता बेटा गुस्सा हो जाता है और इस बात पर देर तक दोनों में बहस होती है कि शराब जब उसके लिए हानिकारक है तो वो आख़िर शराब पीता ही क्यों है। अगर वह शराब पीना नहीं छोड़ेगा तो वह इस घर को छोड़कर चला जाएगा। बाप बेटे की मिन्नत समाजत करके उसे मनाता है और ये तय पाता है कि बची हुई शराब बेटा कहीं बेच आए। धर्मपरायण बेटा रात के सन्नाटे में उसे बेचने की कोशिश में नाकाम हो कर एक बेंच पर आकर बैठ जाता है। वहाँ एक मर्द और एक औरत व्हिस्की की मस्ती में सरशार नज़र आते हैं। उनके संवाद से जवानी की जानकारी होती है और उस नौजवान को नई दुनिया में ले जाती है। वो शराब के सिलसिले में काफ़ी देर तक सोच-विचार करता रहता है और अंततः शराब पी कर घर वापस लौट आता है।"

बोहरान

"निराश्रय की पीड़ा और मानव स्वभाव की कमीनगी को इस कहानी में प्रस्तुत किया गया है। गर्वनमेंट की ओर से मकानों के निर्माण के लिए ज़मीनें अलाट की जाती हैं। उन ज़मीनों के ख़रीदारों की सूची में जहाँ एक तरफ़ प्रोफ़ेसर सुहैल हैं वहीं दूसरी ओर एक दफ़्तर का चपरासी चाँद ख़ाँ है। मिस्त्री और ठेकेदार दोनों के साथ समान व्यवहार करते हैं। भ्रष्टाचार के एक लम्बे क्रम के बाद प्रोफ़ेसर सुहेल का मकान जब बन कर तैयार होता है तो इतना बे-ढंगा होता है कि वो ख़ुद को किसी तरह भी उसमें रहने के लिए तैयार नहीं कर पाते हैं और एक जर्मन सैलानी को किराये पर दे देते हैं। किराया इतना ज़्यादा होता है कि वो उससे एक नया घर बना सकते हैं। प्रोफ़ेसर सुहैल दोष रहित मकान बनाने का निश्चय करके अख़बार उठा लेते हैं और ख़ाली ज़मीनों के इश्तिहार पढ़ने लगते हैं।"

बर्दा फ़्रोश

नारी की अनादिकालीन बेबसी, मजबूरी और शोषण की कहानी। माई जमी ने बर्दा-फ़रोशी का नया ढंग ईजाद किया। वो किसी ऐसे बुड्ढे को तलाश करती जो नौजवान लड़की का इच्छुक होता और फिर रेशमाँ को बीवी के रूप में भेज देती। रेशमा चंद दिन में घर के ज़ेवर और रुपये पैसे चुरा कर भाग आती और नए गाहक की तलाश होती। लेकिन चौधरी गुलाब के यहाँ रेशमाँ का दिल लग जाता है और वो जाना नहीं चाहती। माई जमी बदले की भावना से पुराने गाहक या शौहर करम दीन को ख़बर कर देती है और वो आकर गुलाब चंद को सारी स्थिति बताता है। गुलाब चंद आग बबूला होता है। मिल्कियत के अधिकार के लिए दोनों में देर तक मुक़ाबला होता है। आख़िर दोनों हाँप कर इस बात पर सहमत हो जाते हैं कि आपस में लड़ने के बजाय लड़ाई की जड़ रेशमाँ का ही काम तमाम कर दिया जाये। ठीक उसी वक़्त टीले के पीछे से माई जमी नुमूदार होती है और दोनों को इस बात पर रज़ामंद कर लेती है कि दोनों का लूटा हुआ पैसा वापस कर दिया जाये तो वो रेशमाँ को छोड़ देंगे। दोनों राज़ी हो जाते हैं और फिर वो दोनों जो चंद लम्हे पहले एक दूसरे के ख़ून के प्यासे थे, बे-तकल्लुफ़ी से मौसम और मंहगाई पर बात करने लगते हैं।

ग़ाज़ी मर्द

मस्जिद के इमाम साहब की एक बेटी है। दीनदार और पाकबाज़, लेकिन ना-बीना। मरने से पहले इमाम साहब गाँव वालों को उसकी ज़िम्मेदारी दे जाते हैं। इमाम साहब की मौत के बाद गाँव में एक पंचायत होती है और नौजवानों से उस नाबीना लड़की से शादी करने के बारे में पूछा जाता है। उन नौजवानों में से एक हट्टा-कट्टा खू़बसूरत नौजवान, जिसे कई ओर लोग अपना दामाद बनाना चाहते हैं उससे शादी कर लेता है। घर के कामकाज के लिए एक लड़की रहमते को रख लेता है। लड़की ना-बीना को सारी बातें बताती रहती हैं। एक दिन वह बताती है कि उसके शौहर की एक खू़बसूरत लड़की से मुलाक़ात हुई है। इससे उसके मन में शक होता है और उस शक को दूर करने के लिए वह जो करती है वही उस नौजवान को एक ग़ाज़ी मर्द बना देता है।

चक्कर

नौकरों के साथ अमानवीय व्यवहार और उनके शोषण की कहानी है। सेठ छन्ना मल अपने मुंशी चेलाराम को भरी गर्मी में दसियों काम बताते हैं। चेलाराम दिन-भर लू के थपेड़े और भूख-प्यास बर्दाश्त करके जब वापस लौटता है तो छन्ना मल अपने दोस्तों के साथ ख़ुश गप्पियों में व्यस्त होते हैं और उनके एक दोस्त आवागवन की समस्या पर अपने विचार प्रकट कर रहे होते हैं। सेठ छन्ना मल चेलाराम की तरफ़ कोई ख़ास ध्यान नहीं देते और वो अपने घर लौट आता है। घर के बाहर वो चारपाई पर लेट कर अपने पड़ोसी को देखने लगता है जो अपने घोड़े को चुम्कार कर प्यार से मालिश कर रहा है। चेलाराम की बीवी कई बार खाना खाने के लिए बुलाने आती है लेकिन वो निरंतर ख़ामोश दर्शन में लीन रहता है। शायद वो आवागवन की समस्या पर विचार कर रहा होता है, शायद वो ये सोच रहा होता है कि उसका उगला जन्म घोड़े की जून में हो।

फ़रार

फ़रार दर-अस्ल एक संवेदनशील लेकिन बुज़दिल इंसान की कहानी है। मामूँ जो इस कहानी के मुख्य पात्र हैं, स्वभावतः सुस्त और आराम-पसंद हैं, इसी वजह से वो मैट्रिक का इम्तिहान भी न पास कर सके। नुमाइश में जो लड़की उन्हें शादी के लिए पसंद आती है उसके वालिद शादी के लिए तीन शर्तें रखते हैं, अव्वल ये कि उनका दामाद ख़ूबसूरत हो, दोयम कम अज़ कम ग्रेजुएट हो और तीसरे ये कि दो लाख मेहर देने की हैसियत रखता हो। मामूँ ने ये चैलेंज क़बूल कर लिया। भाईयों ने अपनी-अपनी जायदाद बेचने का फ़ैसला किया और मामूँ ने तीन साल में ग्रेजुएट बन कर दिखा दिया, लेकिन शादी के दिन ठीक निकाह के समय वो शादी हॉल से फ़रार हो जाते हैं।

तिनके का सहारा

शांत स्वभाव और मिलनसार मीर साहब के अचानक देहांत से मोहल्लावासी उनकी ग़रीबी से परिचित होते हैं और ये तय करते हैं कि सय्यद की बेवा और उनके बच्चों की परवरिश सब मिलकर करेंगे। चार साल तक सब के सहयोग से बच्चों की परवरिश होती रही लेकिन फिर हाजी साहब का हद से बढ़ा हुआ हस्तक्षेप सबको खलने लगा क्योंकि ये ख़्याल आम हो गया था कि हाजी साहब अपने बेटे की शादी बेवा की ख़ूबसूरत बेटी से करना चाहते हैं। बेवा की बेटियाँ जो हाजी साहब के घर पढ़ने जाया करती थीं उनका जाना भी स्थगित हो गया और मोहल्ले की मस्जिद के इमाम साहिब बच्चीयों के शिक्षक नियुक्त हुए। इमाम साहब ने एक दिन मोहल्ले के संजीदा लोगों के सामने बेवा से शादी का प्रस्ताव रखा और फिर एक हफ़्ता बाद वो बेवा के घर अपने थोड़े सामान के साथ उठ आए। अगले दिन जब नियमानुसार दूध बेचने वाले का लड़का दूध देने आया तो इमाम साहब ने उससे कहा, मियाँ लड़के, अपने उस्ताद से कहना वो अब दूध न भेजा करें, हमें जितने की ज़रूरत होगी हम ख़ुद मोल ले आएँगे, हाँ कोई नज़र नियाज़ की चीज़ हो तो मस्जिद भेज दिया करें।

दो तमाशे

मिर्ज़ा बिरजीस क़दर आर्थिक रूप से विपन्न परिवार के चशम-ओ-चिराग़ हैं। यद्यपि वो अंदर से खोखले हो चुके हैं लेकिन सामाजिक रूप से अपनी बरतरी बरक़रार रखने के लिए ऊपरी दिखावा और कठोर स्वभाव को ज़रूरी समझते हैं। वो अपनी कार में बैठ कर जूतों की ख़रीदारी करने जाते हैं और दुकान के मुलाज़िम को ख़्वाह-मख़ाह डाँटते फटकारते हैं। इसी बीच एक अंधा बूढ़ा फ़क़ीर भीख मांगने आता है जिसे मिर्ज़ा बिरजीस क़दर डपट कर भगा देते हैं, क्योंकि उनकी जेब में पैसे ही नहीं होते हैं। एक दिन जब वो एक फ़िल्म देख रहे होते हैं जिसमें भीख मांगने का सीन आता है तो मिर्ज़ा बिरजीस क़दर की आँखों से आँसू जारी हो जाते हैं।

एक दर्दमंद दिल

नौजवानों के ख़्वाबों की शिकस्त और नौकरी का संकट इस कहानी का विषय है। फ़ज़ल अपने वालिद की इच्छा पर लंदन में क़ानून की शिक्षा प्राप्त कर रहा है लेकिन देश सेवा की भावना से सरशार फ़ज़ल का दिल क़ानून की शिक्षा में नहीं लगता है। ज़ेहनी तौर पर फ़रार हासिल करने के लिए वो डांसिंग का डिप्लोमा भी कर लेता है। इत्तेफ़ाक़ से उसे एक लड़की रोज़ मैरी मिल जाती है जो देश सेवा की इस भावना से प्रभावित हो कर उसकी सहयोगी बनने की इच्छा प्रकट करती है। फ़ज़ल तुरंत घर तार देता है कि वो क़ानून की शिक्षा छोड़कर वतन वापस आ रहा है और उसने शादी भी कर ली है। बंदरगाह पर उसे घर का मुलाज़िम एक ख़त देता है जिसमें वालिद ने उससे अपनी असंबद्धता प्रकट की थी। एक महीने तक दोनों एक होटल में ठहरे रहते हैं। इस दौरान इंतिहाई भाग दौड़ के बावजूद फ़ज़ल को कोई मुनासिब नौकरी नहीं मिल पाती है और आख़िर एक दिन वो डांसिंग रुम खोल लेता है। उसको देखकर रोज़ मेरी के चेहरे का रंग फ़क़ हो जाता है तो फ़ज़ल उससे कहता है, आख़िर ललित कला की सेवा भी तो राष्ट्र सेवा ही है ना।

सुर्ख़ जुलूस

अपने अधिकारों के लिए पिछड़े वर्ग के जागरूकता की एक दिलचस्प कहानी है। अमरीकी औरत मिस गिलबर्ट हिंदुस्तान मात्र इस उद्देश्य से आती है कि उसे यहाँ के आंदोलनों, सत्याग्रह और जलसे जुलूस को देखने का शौक़ था। लेकिन आज़ादी के तुरंत बाद ये सारे हंगामे ख़त्म हो चुके थे, जिस कारण वो उदास रहती थी। होटल के अस्सिटेंट मैनेजर का दोस्त रियाज़ गिलबर्ट की उदासी दूर करने के उद्देश्य से अपनी प्रतिभा से एक निर्जन क्षेत्र में फ़र्ज़ी जुलूस का आयोजन करता है। साईसों का ये जुलूस गिलबर्ट एक फ़्लैट की बालकनी पर बैठ कर देखती है। आनंदित हो कर वो साईसों की मदद के लिए चैक काट कर रियाज़ को देती है। एक सप्ताह बाद शहर के बीचो-बीच हज़ारों की तादाद में साईस असल जुलूस निकालते हैं जो रियाज़ ही का लिखा हुआ गीत गा रहे होते हैं लेकिन रियाज़ और उसका दोस्त गिलबर्ट से उस जुलूस का तज़किरा तक नहीं करते हैं।

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Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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