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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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हनीफ़ कैफ़ी

1934 - 2021 | दिल्ली, भारत

हनीफ़ कैफ़ी

अशआर 11

मुद्दतें गुज़रीं मुलाक़ात हुई थी तुम से

फिर कोई और आया नज़र आईने में

अपने काँधों पे लिए फिरता हूँ अपनी ही सलीब

ख़ुद मिरी मौत का मातम है मिरे जीने में

अना अना के मुक़ाबिल है राह कैसे खुले

तअल्लुक़ात में हाइल है बात की दीवार

तमाम आलम से मोड़ कर मुँह मैं अपने अंदर समा गया हूँ

मुझे आवाज़ दे ज़माने मैं अपनी आवाज़ सुन रहा हूँ

मिले वो लम्हा जिसे अपना कह सकें 'कैफ़ी'

गुज़र रहे हैं इसी जुस्तुजू में माह-ओ-साल

ग़ज़ल 11

पुस्तकें 12

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