वहशत सी वहशत होती है
वहशत सी वहशत होती है
ज़िंदा हूँ हैरत होती है
जल बुझने वालों से पूछो
ग़म की क्या हिद्दत होती है
रेहन न रख देना बीनाई
इस की भी मुद्दत होती है
सारे क़र्ज़ चुका देने की
कभी कभी उजलत होती है
दिल और जान के सौदे जो हैं
इन में कब हुज्जत होती है
ख़ुद से झूट कहाँ तक बोलें
थोड़ी सी ख़िफ़्फ़त होती है
अपने आप से मिलने में भी
अब कितनी दिक़्क़त होती है
ख़ुद से बातें करने की भी
अब किस को फ़ुर्सत होती है
कुछ कह लो रूखी-सूखी में
अपने हाँ बरकत होती है
सोना सी मिट्टी के घर में
कब हम से मेहनत होती है
धान हमारे चिड़िया खाएँ
चिड़ियों को आदत होती होती है
बच्चों से क्या शिकवा करना
मिट्टी में उल्फ़त होती है
सब्ज़ किवाड़ों की झुर्रियों में
जुगनू या हैरत होती है
टाट के मट-मैले पर्दों में
क्या उजली रंगत होती है
फटी पुरानी सी चुनरी में
क्या भोली सूरत होती है
चावल की पीली रोटी में
क्या सोंधी लज़्ज़त होती है
रुल्ली के एक इक टाँके में
पोरों की चाहत होती है
जाड़े ओढ़ के सो जाने में
कब कोई ज़हमत होती है
शाम को तेरा हँस कर मिलना
दिन भर की उजरत होती है
- पुस्तक : एक दिया और एक फूल (पृष्ठ 59)
- रचनाकार :इशरत आफ़रीं
- प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2022)
- संस्करण : 2nd
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