किस से अहवाल कहूँ अपना मैं ऐ यार कि तू
किस से अहवाल कहूँ अपना मैं ऐ यार कि तू
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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किस से अहवाल कहूँ अपना मैं ऐ यार कि तू
मिल के अग़्यार से मुझ से है बेज़ार कि तू
न मेरी बात को पूछे है न देखे है इधर
एक दिन ये न किया आशिक़-ए-बीमार कि तू
रोज़ बा-दीदा-तर ख़ाक बसर फिरता है
न रहा शहर में इक कूचा-ओ-बाज़ार कि तू
वहाँ हैं जा के जताता है ये मुसीबत अपनी
आज तक कुल हैं दिल को तेरे ज़िन्हार कि तू
सख़्त बेकल है निकल कूचा-ए-ग़म से अब तो
इस क़दर कब है अज़िय्यत का सज़ा-वार कि तू
यूँही फ़रियाद-कुनाँ ना'रा-ज़नान ख़ाक बसर है
इक शब आईयो मेरे पस-ए-दीवार कि तू
चाह में तेरी ही डूबा है कुएँ में ग़म के
जूँ ज़ुलेख़ा हैं यूसुफ़ का तलबगार कि तू
मेरा एहसान है मेरा आशिक़-ए-सादिक़ है सनम
जबकि ये भी न हो मैं पढ़ूँ अश'आर कि तू
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