सैंकड़ों ही रहनुमा हैं रास्ता कोई नहीं
सैंकड़ों ही रहनुमा हैं रास्ता कोई नहीं
आइने चारों तरफ़ हैं देखता कोई नहीं
सब के सब हैं अपने अपने दाएरे की क़ैद में
दाएरों की हद से बाहर सोचता कोई नहीं
सिर्फ़ मातम और ज़ारी से ही जिस का हल मिले
इस तरह का तो कहीं भी मसअला कोई नहीं
ये जो साए से भटकते हैं हमारे इर्द-गिर्द
छू के उन को देखिए तो वाहिमा कोई नहीं
जो हुआ ये दर्ज था पहले ही अपने बख़्त में
इस का मतलब तो हुआ कि बेवफ़ा कोई नहीं
तेरे रस्ते में खड़े हैं सिर्फ़ तुझ को देखने
मुद्दआ' पूछो तो अपना मुद्दआ' कोई नहीं
कुन-फ़काँ के भेद से मौला मुझे आगाह कर
कौन हूँ मैं गर यहाँ पर दूसरा कोई नहीं
वक़्त ऐसा हम-सफ़र है जिस की मंज़िल है अलग
वो सराए है कि जिस में ठैरता कोई नहीं
गाहे गाहे ही सही 'अमजद' मगर ये वाक़िआ'
यूँ भी लगता है कि दुनिया का ख़ुदा कोई नहीं
- पुस्तक : Batain Kartay Din (पृष्ठ 103)
- रचनाकार : Amjad Islam Amjad
- प्रकाशन : Sang-e-meel Publications (2014)
- संस्करण : 2014
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