आदिल मंसूरी के शेर
मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
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टैग : हौसला
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किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया
ये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी
जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर
वो तस्वीर बातें बनाने लगी
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टैग : तस्वीर
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जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख
इक रोज़ मेरी जान ये हरकत भी कर के देख
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मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ
ये जब्र है कि मैं ख़ुद अपने इख़्तियार में हूँ
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क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो
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टैग : रास्ता
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ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
दरिया के किनारे पे मिरी लाश पड़ी थी
और पानी की तह में वो मुझे ढूँड रहा था
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कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ में
कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार
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चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहीं
बच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख-भाल से
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टैग : बचपन
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नींद भी जागती रही पूरे हुए न ख़्वाब भी
सुब्ह हुई ज़मीन पर रात ढली मज़ार में
सोए तो दिल में एक जहाँ जागने लगा
जागे तो अपनी आँख में जाले थे ख़्वाब के
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कभी ख़ाक वालों की बातें भी सुन
कभी आसमानों से नीचे उतर
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अल्लाह जाने किस पे अकड़ता था रात दिन
कुछ भी नहीं था फिर भी बड़ा बद-ज़बान था
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ऐसे डरे हुए हैं ज़माने की चाल से
घर में भी पाँव रखते हैं हम तो सँभाल कर
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टैग : वहशत
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कब से टहल रहे हैं गरेबान खोल कर
ख़ाली घटा को क्या करें बरसात भी तो हो
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हम्माम के आईने में शब डूब रही थी
सिगरेट से नए दिन का धुआँ फैल रहा था
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टैग : सिगरेट
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बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था
मैं हाथ में तलवार लिए झूम रहा था
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फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया
उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के
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टैग : हुस्न
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तू किस के कमरे में थी
मैं तेरे कमरे में था
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टैग : बोल्ड पोयम
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हर आँख में थी टूटते लम्हों की तिश्नगी
हर जिस्म पे था वक़्त का साया पड़ा हुआ
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न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को
उदास कर गए नींदों के राहगीरों को
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दरवाज़ा खटखटा के सितारे चले गए
ख़्वाबों की शाल ओढ़ के मैं ऊँघता रहा
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टैग : ख़्वाब
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जाने किस को ढूँडने दाख़िल हुआ है जिस्म में
हड्डियों में रास्ता करता हुआ पीला बुख़ार
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फिर बालों में रात हुई
फिर हाथों में चाँद खिला
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हुदूद-ए-वक़्त से बाहर अजब हिसार में हूँ
मैं एक लम्हा हूँ सदियों के इंतिज़ार में हूँ
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लहू में उतरती रही चाँदनी
बदन रात का कितना ठंडा लगा
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हम को गाली के लिए भी लब हिला सकते नहीं
ग़ैर को बोसा दिया तो मुँह से दिखला कर दिया
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टैग : किस
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दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का
झोंका हवा का खिड़की के पर्दे हिला गया
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फिर कोई वुसअत-ए-आफ़ाक़ पे साया डाले
फिर किसी आँख के नुक़्ते में उतारा जाऊँ
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खिड़की ने आँखें खोली
दरवाज़े का दिल धड़का
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उँगली से उस के जिस्म पे लिक्खा उसी का नाम
फिर बत्ती बंद कर के उसे ढूँडता रहा
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तस्वीर में जो क़ैद था वो शख़्स रात को
ख़ुद ही फ़्रेम तोड़ के पहलू में आ गया
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ख़ुद-ब-ख़ुद शाख़ लचक जाएगी
फल से भरपूर तो हो लेने दो
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तुम को दावा है सुख़न-फ़हमी का
जाओ 'ग़ालिब' के तरफ़-दार बनो
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टैग : मिर्ज़ा ग़ालिब
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दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
तन्हाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख
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टैग : तन्हाई
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ख़्वाहिश सुखाने रक्खी थी कोठे पे दोपहर
अब शाम हो चली मियाँ देखो किधर गई
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नश्शा सा डोलता है तिरे अंग अंग पर
जैसे अभी भिगो के निकाला हो जाम से
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जिस्म की मिट्टी न ले जाए बहा कर साथ में
दिल की गहराई में गिरता ख़्वाहिशों का आबशार
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यादों ने उसे तोड़ दिया मार के पत्थर
आईने की ख़ंदक़ में जो परछाईं पड़ी थी
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टैग : याद
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आवाज़ की दीवार भी चुप-चाप खड़ी थी
खिड़की से जो देखा तो गली ऊँघ रही थी
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गिरते रहे नुजूम अंधेरे की ज़ुल्फ़ से
शब भर रहीं ख़मोशियाँ सायों से हम-कनार
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वो जान-ए-नौ-बहार जिधर से गुज़र गया
पेड़ों ने फूल पत्तों से रस्ता छुपा लिया
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अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार
इक शख़्स चीख़ता है समुंदर के आर-पार
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