अफ़ज़ल मिनहास

ग़ज़ल 18

अशआर 23

अपनी बुलंदियों से गिरूँ भी तो किस तरह

फैली हुई फ़ज़ाओं में बिखरा हुआ हूँ मैं

उजली उजली ख़्वाहिशों पर नींद की चादर डाल

याद के रौज़न से कुछ ताज़ा हवा भी आएगी

चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे

आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया

दर्द ज़ंजीर की सूरत है दिलों में मौजूद

इस से पहले तो कभी इस के ये पैराए थे

  • शेयर कीजिए

जिन पत्थरों को हम ने अता की थीं धड़कनें

उन को ज़बाँ मिली तो हमीं पर बरस पड़े

  • शेयर कीजिए

"रावलपिंडी" के और शायर

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

GET YOUR FREE PASS
बोलिए