Agha Hashr Kashmiri's Photo'

आग़ा हश्र काश्मीरी

1879 - 1935 | लाहौर, पाकिस्तान

लोकप्रिय नाटककार और शायर, जिनके लेखन ने उर्दू में नाटक लेखन को एक स्थायी परम्परा के रूप में स्थापित किया

लोकप्रिय नाटककार और शायर, जिनके लेखन ने उर्दू में नाटक लेखन को एक स्थायी परम्परा के रूप में स्थापित किया

आग़ा हश्र काश्मीरी

ग़ज़ल 5

 

अशआर 10

ये खुले खुले से गेसू इन्हें लाख तू सँवारे

मिरे हाथ से सँवरते तो कुछ और बात होती

गोया तुम्हारी याद ही मेरा इलाज है

होता है पहरों ज़िक्र तुम्हारा तबीब से

याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं

भूलने वाले कभी तुझ को भी याद आता हूँ मैं

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सब कुछ ख़ुदा से माँग लिया तुझ को माँग कर

उठते नहीं हैं हाथ मिरे इस दुआ के बाद

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गो हवा-ए-गुलसिताँ ने मिरे दिल की लाज रख ली

वो नक़ाब ख़ुद उठाते तो कुछ और बात होती

पुस्तकें 48

वीडियो 10

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चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की

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याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं

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याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं

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सू-ए-मय-कदा न जाते तो कुछ और बात होती

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