अहमद महफ़ूज़
ग़ज़ल 52
अशआर 41
सुना है शहर का नक़्शा बदल गया 'महफ़ूज़'
तो चल के हम भी ज़रा अपने घर को देखते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
उस से मिलना और बिछड़ना देर तक फिर सोचना
कितनी दुश्वारी के साथ आए थे आसानी में हम
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
गुम-शुदा मैं हूँ तो हर सम्त भी गुम है मुझ में
देखता हूँ वो किधर ढूँडने जाता है मुझे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
बिछड़ के ख़ाक हुए हम तो क्या ज़रा देखो
ग़ुबार जा के उसी कारवाँ से मिलता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए