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अख्तर शुमार

1960 - 2022 | पाकिस्तान

अख्तर शुमार

ग़ज़ल 15

नज़्म 1

 

अशआर 12

मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा बने

तू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं

मैं घर को फूँक रहा था बड़े यक़ीन के साथ

कि तेरी राह में पहला क़दम उठाना था

अभी सफ़र में कोई मोड़ ही नहीं आया

निकल गया है ये चुप-चाप दास्तान से कौन

मुद्दतों में आज दिल ने फ़ैसला आख़िर दिया

ख़ूब-सूरत ही सही लेकिन ये दुनिया झूट है

वो मुस्कुरा के कोई बात कर रहा था 'शुमार'

और उस के लफ़्ज़ भी थे चाँदनी में बिखरे हुए

पुस्तकें 2

 

ऑडियो 3

अभी दिल में गूँजती आहटें मिरे साथ हैं

ज़रा सी देर थी बस इक दिया जलाना था

लरज़ उठा है मिरे दिल में क्यूँ न जाने दिया

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