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अंजुम इरफ़ानी

1937 | बलरामपुर, भारत

अंजुम इरफ़ानी

ग़ज़ल 14

नज़्म 1

 

अशआर 23

चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल झील सबा

चुराईं सब ने ही कुछ कुछ शबाहतें तेरी

कोई पुराना ख़त कुछ भूली-बिसरी याद

ज़ख़्मों पर वो लम्हे मरहम होते हैं

सफ़र में हर क़दम रह रह के ये तकलीफ़ ही देते

बहर-सूरत हमें इन आबलों को फोड़ देना था

तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया

जो ऐब था उसे भी हुनर कह दिया गया

लहजे का रस हँसी की धनक छोड़ कर गया

वो जाते जाते दिल में कसक छोड़ कर गया

पुस्तकें 3

 

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