aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1847 - 1885 | दिल्ली, भारत
उत्तर-क्लासिकी शायर, ज़ौक़ और ग़ालिब के शिष्य अपने सर्वाधिक लोकप्रिय शेरों के लिए प्रसिद्ध
न मैं समझा न आप आए कहीं से
पसीना पोछिए अपनी जबीं से
कुछ ख़बर होती तो मैं अपनी ख़बर क्यूँ रखता
ये भी इक बे-ख़बरी थी कि ख़बर-दार रहा
शर्म भी इक तरह की चोरी है
वो बदन को चुराए बैठे हैं
सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से
हम दिल में नक़्श आप की तस्वीर कर चुके
मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
अब तक तो जिस ज़मीं पे रहे आसमाँ रहे
Deewan-e-Anwar
Nazm-e-Dilfareb
Maulana Abul Kalam Azad Ki Sawaneh Hayat
Nazm-e-Dilfroz
Diwan-e-Anwar
1899
Quran Aur Aurat
न मैं समझा न आप आए कहीं से पसीना पोछिए अपनी जबीं से
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