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अनवर साबरी

1901 - 1985 | दिल्ली, भारत

विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी और वक्ता, अपनी शायरी में सूफीवाद और मस्तानगी के लिए मशहूर

विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी और वक्ता, अपनी शायरी में सूफीवाद और मस्तानगी के लिए मशहूर

अनवर साबरी

ग़ज़ल 26

नज़्म 2

 

अशआर 31

तसव्वुर के सहारे यूँ शब-ए-ग़म ख़त्म की मैं ने

जहाँ दिल की ख़लिश उभरी तुम्हें आवाज़ दी मैं ने

निगाह-ओ-दिल से गुज़री दास्ताँ तक बात जा पहुँची

मिरे होंटों से निकली और कहाँ तक बात जा पहुँची

मैं जो रोया उन की आँखों में भी आँसू गए

हुस्न की फ़ितरत में शामिल है मोहब्बत का मिज़ाज

लपका है बगूला सा अभी उन की तरफ़ को

शायद किसी मजबूर की आहों का धुआँ था

वक़्त जब करवटें बदलता है

फ़ित्ना-ए-हश्र साथ चलता है

पुस्तकें 8

 

ऑडियो 10

उम्र गुज़री है इल्तिजा करते

ज़िंदगी के हसीं बहाने से

तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात कीजिए

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