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अज़ीज़ हामिद मदनी

1922 - 1991 | कराची, पाकिस्तान

नई उर्दू शायरी के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर, उनकी कई ग़ज़लें गायी गई हैं।

नई उर्दू शायरी के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर, उनकी कई ग़ज़लें गायी गई हैं।

अज़ीज़ हामिद मदनी

ग़ज़ल 43

नज़्म 1

 

अशआर 37

जो बात दिल में थी उस से नहीं कही हम ने

वफ़ा के नाम से वो भी फ़रेब खा जाता

मेरी वफ़ा है उस की उदासी का एक बाब

मुद्दत हुई है जिस से मुझे अब मिले हुए

ख़ूँ हुआ दिल कि पशीमान-ए-सदाक़त है वफ़ा

ख़ुश हुआ जी कि चलो आज तुम्हारे हुए लोग

माना कि ज़िंदगी में है ज़िद का भी एक मक़ाम

तुम आदमी हो बात तो सुन लो ख़ुदा नहीं

तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा दाम-ए-बर्दा-फ़रोश

हज़ार तरह के क़िस्से सफ़र में होते हैं

पुस्तकें 6

 

वीडियो 14

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

अज़ीज़ हामिद मदनी

अज़ीज़ हामिद मदनी

अज़ीज़ हामिद मदनी

अज़ीज़ हामिद मदनी

अज़ीज़ हामिद मदनी

फ़िराक़ से भी गए हम विसाल से भी गए

अज़ीज़ हामिद मदनी

सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए

अज़ीज़ हामिद मदनी

ख़त्म हुई शब-ए-वफ़ा ख़्वाब के सिलसिले गए

अज़ीज़ हामिद मदनी

गुल का वो रुख़ बहार के आग़ाज़ से उठा

अज़ीज़ हामिद मदनी

ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई

अज़ीज़ हामिद मदनी

नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़ अभी से है

अज़ीज़ हामिद मदनी

ऑडियो 6

क्या हुए बाद-ए-बयाबाँ के पुकारे हुए लोग

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

फ़िराक़ से भी गए हम विसाल से भी गए

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