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बहराम जी

1828 - 1895

पारसी धर्म के विद्वान, उर्दू की साहित्यिक परंपराओं से परिचित होकर उर्दू और फ़ारसी में शेर कहने वाले शायर

पारसी धर्म के विद्वान, उर्दू की साहित्यिक परंपराओं से परिचित होकर उर्दू और फ़ारसी में शेर कहने वाले शायर

बहराम जी

ग़ज़ल 11

अशआर 12

पता मिलता नहीं उस बे-निशाँ का

लिए फिरता है क़ासिद जा-ब-जा ख़त

ज़ाहिदा काबे को जाता है तो कर याद-ए-ख़ुदा

फिर जहाज़ों में ख़याल-ए-ना-ख़ुदा करता है क्यूँ

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है मुसलमाँ को हमेशा आब-ए-ज़मज़म की तलाश

और हर इक बरहमन गंग-ओ-जमन में मस्त है

नहीं दुनिया में आज़ादी किसी को

है दिन में शम्स और शब को क़मर बंद

ज़ाहिरी वाज़ से है क्या हासिल

अपने बातिन को साफ़ कर वाइज़

पुस्तकें 3

 

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