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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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भारतेंदु हरिश्चंद्र

1850 - 1885 | बनारस, भारत

हिंदी के नवीकरण के प्रचारक, क्लासिकी शैली में अपनी उर्दू ग़ज़ल के लिए प्रसिद्ध

हिंदी के नवीकरण के प्रचारक, क्लासिकी शैली में अपनी उर्दू ग़ज़ल के लिए प्रसिद्ध

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ग़ज़ल 19

अशआर 20

क़ब्र में राहत से सोए थे था महशर का ख़ौफ़

बाज़ आए मसीहा हम तिरे एजाज़ से

ग़ाफ़िल इतना हुस्न पे ग़र्रा ध्यान किधर है तौबा कर

आख़िर इक दिन सूरत ये सब मिट्टी में मिल जाएगी

बोसा लेने देते हैं लगते हैं गले मेरे

अभी कम-उम्र हैं हर बात पर मुझ से झिजकते हैं

बात करने में जो लब उस के हुए ज़ेर-ओ-ज़बर

एक साअत में तह-ओ-बाला ज़माना हो गया

रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं

क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं

रुबाई 2

 

पुस्तकें 3

 

चित्र शायरी 2

 

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