बिस्मिल आग़ाई
ग़ज़ल 20
अशआर 4
हर सम्त है वीरानी सी वीरानी का आलम
अब घर सा नज़र आने लगा है मिरा घर भी
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सिमटा तिरा ख़याल तो दिल में समा गया
फैला तो इस क़दर कि समुंदर लगा मुझे
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होती रही आँखों से जो यूँ ख़ून की बारिश
दिल ख़त्म न हो जाए जिगर ख़त्म न हो जाए
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घर में भी नज़र आएँगे अंदाज़-ए-बयाबाँ
जब तक मिरी वहशत का असर ख़त्म न हो जाए
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