फ़हीम जोगापुरी
ग़ज़ल 40
अशआर 14
वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से
वो और थे जो हार गए आसमान से
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रह गई है कुछ कमी तो क्या शिकायत है 'फहीम'
इस जहाँ में सब अधूरे हैं मुकम्मल कौन है
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शाम ख़ामोश है पेड़ों पे उजाला कम है
लौट आए हैं सभी एक परिंदा कम है
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तेरी यादें हो गईं जैसे मुक़द्दस आयतें
चैन आता ही नहीं दिल को तिलावत के बग़ैर
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कितने तूफ़ानों से हम उलझे तुझे मालूम क्या
पेड़ के दुख-दर्द का फूलों से अंदाज़ा न कर
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