Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Ghaus Khah makhah Hyderabadi's Photo'

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

1929 - 2017 | हैदराबाद, भारत

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी के शेर

1.5K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुख़्सारों को

तुम ने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रक्खा है

परेशानी से सर के बाल तक सब झड़ गए लेकिन

पुरानी जेब में कंघी जो पहले थी सो अब भी है

ज़माने का चलन क्या पूछते हो 'ख़्वाह-मख़ाह' मुझ से

वही रफ़्तार बे-ढंगी जो पहले थी सो अब भी है

सियासत-दाँ जो तब्ई मौत मरते

तो साज़िश की ज़रूरत ही होती

उड़ा कर देख ले कोई पतंगें अपनी शेख़ी की

बुलंदी पर अगर हों भी तो कन्ने काट सकता हूँ

किसी की नज़र 'ख़्वाह-मख़ाह' लग जाए

बुढ़ापे में लगते हो तुम नौजवाँ से

जेब ग़ाएब है तो नेफ़ा है बटन के बदले

तुम ने पतलून का पाजामा बना रखा है

समझ ले नाम तेरा ही लिखा है दाने दाने पर

कभी मत सोच मेदे के लिए अच्छा बुरा क्या है

अगर आता हमें हक़ छीन लेना

गुज़ारिश की ज़रूरत ही होती

झगड़ कर जब कहा बेगम ने हम से घर से जाने को

बहुत बे-आबरू हो कर ख़ुद अपने घर से हम निकले

पहले पहले शौहर को हर मौसम भीगा लगता है

यूँ समझो बिल्ली के भागों टूटा छीका लगता है

Recitation

Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here

बोलिए