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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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हसन नईम

1927 - 1991 | पटना, भारत

क्लासिकी शुऊर और अस्री हिस्सियत के इम्तिज़ाज को तख़लीक़ी इज़हार देने वाले मारूफ़ शायर

क्लासिकी शुऊर और अस्री हिस्सियत के इम्तिज़ाज को तख़लीक़ी इज़हार देने वाले मारूफ़ शायर

हसन नईम

ग़ज़ल 56

नज़्म 5

 

अशआर 30

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे

ग़म से बिखरा पाएमाल हुआ

मैं तो ग़म से ही बे-मिसाल हुआ

जो भी कहना है कहो साफ़ शिकायत ही सही

इन इशारात-ओ-किनायात से जी डरता है

गर्द-ए-शोहरत को भी दामन से लिपटने दिया

कोई एहसान ज़माने का उठाया ही नहीं

सरा-ए-दिल में जगह दे तो काट लूँ इक रात

नहीं है शर्त कि मुझ को शरीक-ए-ख़्वाब बना

पुस्तकें 6

 

ऑडियो 19

उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

किसे बताऊँ कि वहशत का फ़ाएदा क्या है

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