जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल 86
अशआर 345
दिलचस्प हो गई तिरे चलने से रहगुज़र
उठ उठ के गर्द-ए-राह लिपटती है राह से
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere