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जावेद नसीमी

1957 | रामपुर, भारत

जावेद नसीमी

ग़ज़ल 9

अशआर 15

एक चेहरा है जो आँखों में बसा रहता है

इक तसव्वुर है जो तन्हा नहीं होने देता

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जिसे आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ

उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है

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मुद्दत हुई कि ज़िंदा हूँ देखे बग़ैर उसे

वो शख़्स मेरे दिल से उतर तो नहीं गया

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ज़रा क़रीब से देखूँ तो कोई राज़ खुले

यहाँ तो हर कोई लगता है आदमी जैसा

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चाँद का क़ुर्ब लगा कैसा चलो पूछ आएँ

आसमानों के सफ़र से वो पलट आया है

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चित्र शायरी 1

 

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