aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1957 | रामपुर, भारत
एक चेहरा है जो आँखों में बसा रहता है
इक तसव्वुर है जो तन्हा नहीं होने देता
जिसे न आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ
उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है
मुद्दत हुई कि ज़िंदा हूँ देखे बग़ैर उसे
वो शख़्स मेरे दिल से उतर तो नहीं गया
ज़रा क़रीब से देखूँ तो कोई राज़ खुले
यहाँ तो हर कोई लगता है आदमी जैसा
साथ चावल के ये कंकर भी निगल जाता है
भूक में आदमी पत्थर भी निगल जाता है
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एक चेहरा है जो आँखों में बसा रहता है इक तसव्वुर है जो तन्हा नहीं होने देता
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