जावेद सबा

ग़ज़ल 12

नज़्म 1

 

अशआर 18

मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें

ये लीजे आप का घर गया है हात छोड़ें

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ये जो मिलाते फिरते हो तुम हर किसी से हाथ

ऐसा हो कि धोना पड़े ज़िंदगी से हाथ

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ये कह के उस ने मुझे मख़मसे में डाल दिया

मिलाओ हाथ अगर वाक़ई मोहब्बत है

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गुज़र रही थी ज़िंदगी गुज़र रही है ज़िंदगी

नशेब के बग़ैर भी फ़राज़ के बग़ैर भी

उस ने आवारा-मिज़ाजी को नया मोड़ दिया

पा-ब-ज़ंजीर किया और मुझे छोड़ दिया

पुस्तकें 1

 

ऑडियो 6

बूंदों की तरह छत से टपकते हुए आ जाओ

तुझ को पाने की ये हसरत मुझे ले डूबेगी

तस्बीह ओ सज्दा-गाह भी सज्दा भी मस्त मस्त

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