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एक नुमायाँ पाकिस्तानी शायर, जो अपनी गज़लों में तन्हाई के विषय की गहराई को गंभीरता से व्यक्त करते हैं

एक नुमायाँ पाकिस्तानी शायर, जो अपनी गज़लों में तन्हाई के विषय की गहराई को गंभीरता से व्यक्त करते हैं

जावेद सबा

ग़ज़ल 13

नज़्म 1

 

अशआर 18

गुज़र रही थी ज़िंदगी गुज़र रही है ज़िंदगी

नशेब के बग़ैर भी फ़राज़ के बग़ैर भी

देखे थे जितने ख़्वाब ठिकाने लगा दिए

तुम ने तो आते आते ज़माने लगा दिए

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मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें

ये लीजे आप का घर गया है हात छोड़ें

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ये जो मिलाते फिरते हो तुम हर किसी से हाथ

ऐसा हो कि धोना पड़े ज़िंदगी से हाथ

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वहशत का ये आलम कि पस-ए-चाक गरेबाँ

रंजिश है बहारों से उलझते हैं ख़िज़ाँ से

पुस्तकें 1

 

वीडियो 5

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

जावेद सबा

जावेद सबा

उस ने आवारा-मिज़ाजी को नया मोड़ दिया

जावेद सबा

महसूस करोगे तो गुज़र जाओगे जाँ से

जावेद सबा

उस ने आवारा-मिज़ाजी को नया मोड़ दिया

जावेद सबा

ऑडियो 6

तुझ को पाने की ये हसरत मुझे ले डूबेगी

तस्बीह ओ सज्दा-गाह भी सज्दा भी मस्त मस्त

बड़ी मुश्किल से छुपाया है कोई देख न ले

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