कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल 35
अशआर 20
उस को खोना अस्ल में उस को पाना है
हासिल का ही परतव है ला-हासिल में
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ख़ुद ही चराग़ अब अपनी लौ से नालाँ है
नक़्श ये क्या उभरा ये कैसा ज़वाल हुआ
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दोनों बहर-ए-शोला-ए-ज़ात दोनों असीर-ए-अना
दरिया के लब पर पानी दश्त के लब पर प्यास
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मैं वहम हूँ कि हक़ीक़त ये हाल देखने को
गिरफ़्त होता हूँ अपना विसाल देखने को
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सब का दामन मोतियों से भरने वाले
मेरी आँख में भी इक आँसू रखना था
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